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सोया मन जग जाए का विकास नहीं हो जाता तब तक नारकीय जीवन से छुटकारा नहीं मिल सकता। ___पर प्रश्न है, अहिंसा की चेतना के जागरण का उपाय क्या है? सब व्यक्ति शांति चाहते हैं। मन की शान्ति, परिवार में शान्ति, राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर शान्ति । सर्वत्र शांति की चर्चा है। यह चाहना एक बात है और शान्ति के अनुकूल साधनों को जुटाना, दूसरी बात है। कभी-कभी विपर्यय होता है। आदमी चाहता कुछ है और करता कुछ है। वह चाहता है शान्ति, पर त्याग की चेतना को विकसित करना नहीं चाहता। यह ध्रुव सत्य है कि त्याग की चेतना को विकसित किए बिना कभी शान्ति की बात नहीं सोची जा सकती। त्याग के बिना अहिंसा का विकास नहीं हो सकता। त्याग है संयम । त्याग के बिना संयम नहीं हो सकता और संयम के बिना अहिंसा नहीं आ सकती। अहिंसा के बिना शान्ति नहीं हो सकती।
त्याग की चेतना को जगाना बहुत कठिन है। इन्द्रियां भोग पसन्द करती हैं। मन इन्द्रियों द्वारा संचालित है, इसलिए उसे भी भोग प्रिय है। आदमी इन्द्रिय-चेतना के स्तर पर जीता है, इसलिए वह भी भोगों में उपलिप्त रहता है। इसलिए त्याग कठिन हो रहा है। त्याग के बिना अहिंसा और शान्ति की बात आकाश-कुसुम की भांति काल्पनिक बन कर रह जाती है। इन्दियां और मन-दोनों त्याग की चेतना को जागृत होने नहीं देते। जब-जब मन में आता है कि त्याग करूं, तब-तब मन की चंचलता आड़े आ जाती है। त्याग नहीं करने देती। कहती है, अभी नहीं, और कभी कर लेना। जब तक इच्छा और चंचलता है तब तक त्याग की भावना को जागने का मौका ही नहीं मिलता। __ इच्छा का साम्राज्य बहुत विशाल है। जब-जब मन में इच्छा पैदा होती है तब-तब चंचलता की एक तरंग उभरती है और आदमी चंचल हो जाता है और जो नहीं करना चाहता था, उसे कर डालता है। फिर वह सोचता है, मैं ऐसा करना चहता था, नहीं कर सका और जो नहीं करना चाहता था, वह कर दिया। ऐसा क्यों हुआ? चंचलता ऐसा करा डालती है। वह करणीय को नहीं करने देती और अकरणीय को करा डालती है। बहुत बड़ा विघ्न है इच्छा
और बहुत बड़ा विघ्न है इच्छा द्वारा प्रेरित चंचलता। ___ व्यक्ति ने कहा, मैं बीमार हूं। जानता हूं अपनी बीमारी को। दु:ख भी भोग रहा हूं। डॉक्टर ने चीनी और नमक न खाने के लिए कहा है। पर क्या करूं? खाए बिना रह नहीं सकता। मिठाई सामने आती है। हाथ उठता है और तत्काल मुंह में कौर चला जाता है। विवश हूं। यह है चंचलता का चमत्कार या प्रभाव ।
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