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________________ ३०. क्या धार्मिक होना जरूरी है? एक युवक ने पूछा-क्या धार्मिक होना जरूरी है ? एक प्रश्न का मैं उत्तर दूं, इतने में ही एक दूसरा व्यक्ति आ गया। वह बोला—आज का युग बहुत जटिल है। हिंसा और अपराध बढ़ रहे हैं। आदमी को मारना सहज हो गया है। क्रूरता बहुत बढ़ी है। क्या इसका कोई समाधान है? क्या क्रूरता मिटाई जा सकती है? मैंने पूछा क्रूरता को मिटाने, हिंसा और अपराध को रोकने की जरूरत क्या है? हिंसा और अपराध को कम करना क्यों चाहते हो? उस भाई ने उत्तर में कहा—समाज स्वस्थ तभी रह सकता है जब उसमें अपराध और हिंसा कम होते हैं। जब ये दोनों अधिक होते हैं तब समाज रुग्ण बन जाता है और वह शिष्ट व्यक्तियों का समाज नहीं होता। इसलिए हिंसा और अपराध को कम करना आवश्यक है। अन्यथा शांति का जीवन नहीं जीया जा सकता। हिंसा आदि की स्थिति में जीवन नारकीय बन जाता है। कोई भी सामाजिक व्यक्ति नारकीय जीवन जीना नहीं चाहता। सब स्वर्गीय जीवन जीना चाहते हैं। जहां छीना-झपटी है, आपाधापी है, एक दूसरे पर प्रहार है, ठगाई है यह है नारकीय जीवन। जहां ऐसा नहीं है, वह है स्वर्गीय जीवन । जीवन नारकीय न हो, स्वर्गीय हो, पर यह हो कैसे सकता है? क्या आर्थिक विकास के द्वारा हिंसा और अपराध कम किए जा सकते हैं? क्या चोरियां और डकैतियां कम की जा सकती हैं? यदि आर्थिक विकास के द्वारा, पदार्थों की बाढ़ के द्वारा ऐसा हो सकता है तो जीवन स्वर्गीय बन सकता है। उस भाई ने कहा, यह संभव नहीं है। मैंने पूछा, कयों? वह बोला, आर्थिक विकास से सुविधाएं बढ़ती हैं, पदार्थ पढ़ते हैं, पर साथ-साथ अपराध भी बढ़ते हैं। इस चर्चा से यह बहुत स्पष्ट हो गया कि आर्थिक विकास कर लेने पर हिंसा और अपराध घटते हैं, ऐसा नहीं है। आर्थिक विकास के साथ-साथ पागलपन और उन्माद बढ़ता है। भोग के साथ उन्माद बढ़ेगा ही। भोग का यह निश्चित परिणाम है। तब मैंने कहा-पदार्थ-विकास से उस नारकीय जीवन के प्रतीकों और प्रतिमानों को नहीं रोका जा सकता। जब तक समाज में अहिंसा की चेतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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