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________________ 214 सोया मन जग जाए व्यक्ति ने लकड़ी को देखकर कहा तुम मूर्ख हो। यह तो चंदन है। एक-एक लकड़ी का एक-एक रुपया तो क्या सौ-सौ रुपया भी मिल सकता है। यह बढ़िया चंदन है।' लकड़हारे की आंखें खुल गई। अज्ञान के कारण आदमी मूल्यवान वस्तु का भी दुरुपयोग कर लेता है। प्राणशक्ति बहुत मूल्यवान है, किन्तु उसके विषय में हमारी जानकारी बहुत कम है। हम स्थूल शरीर को जानते हैं, पर उसकी संचालिका शक्ति प्राण को नहीं जानते। मेडिकल साइंस इस विषय में आगे बढ़ रहा है। उसने शरीर-विद्युत् को खोज निकाला है। उसका मानना है कि शरीर में विद्युत् है। हर कोशिका के पास अपना-अपना बिजली घर है, पॉवर हाउस है। यह बिजली शरीर का संचालन करती है। प्रश्न है कि बिजली घर में बिजली कहां से आती है? उसका मूल केन्द्र कहां है? यह खोज भी आगे बढ़ रही है। पश्चिमी योग साहित्य में एक शब्द प्रचलित है एनर्जी, वाइटल फोर्स। यह प्राणिक शक्ति है। यह हर व्यक्ति के पास होती है। यही संचालिका शक्ति है। प्राण को जानना आवश्यक है और उसको बचाना भी आवश्यक है। हम उसको बचाकर न रखें। उसका उपयोग अतीन्द्रिय शक्तियों के विकास में करें। इस प्राणशक्ति के द्वारा चेतना की अविरल क्षमताओं को जगाएं और विशेष सचाइयों का अनुभव करें, आत्म-साक्षात्कार करें। ___ प्राणशक्ति के चुक जाने पर शरीर का कोई भी अवयव ठीक काम नहीं करता। सारे अवयव शिथिल और निर्वीर्य हो जाते हैं। इन्द्रियां ठीक काम नहीं करतीं। प्राणशक्ति का भंडार जब भरापूरा होता है तब सब कुछ संतुलित रहता है। आदमी जो चाहे सो करने में सक्षम होता है। तीन बातें हैं—प्राणशक्ति को समझना, उसको सुरक्षित रखना और उसका समुचित नियोजन करना। नियोजन की बात बहुत महत्वपूर्ण है। जो अध्यात्म की साधना करने वाले हैं वे अपनी प्राण शक्ति का नियोजन सत्य की खोज में करें। बहुत बड़ा क्षेत्र है। प्रेक्षाध्यान का सूत्र है—पुरुष! सत्य की खोज तूं स्वयं कर। दूसरे की खोज तेरी खोज नहीं होगी। यह कोई पदार्थ नहीं है कि बिलौना किसी ने किया और मक्खन किसी को मिला। यह वह पदार्थ नहीं है जिसका विनिमय हो सके। सत्य दिया नहीं जा सकता। सत्य का अनुभव किया जा सकता है। सत्य का मार्ग बताया जा सकता है। सत्य दिया नहीं जा सकता। मार्ग या सत्य स्वयं को खोजना होता है, स्वयं को अनुभव करना होता है। दूसरे केवल प्रेरणा दे सकते हैं। शक्ति का जागरण स्वयं को करना होता है, सत्य को पाना होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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