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प्राण और पर्याप्ति हैं. श्वास के पीछे एक शक्ति है श्वासप्राण। वाणी का स्वर-यंत्र काम देता है। उसके पीछे एक शक्ति है भाषाप्राण। हम सोचते हैं, चिन्तन करते हैं, उसके पीछे एक शक्ति है मन:प्राण। हम जीते हैं, उसके पीछे एक शक्ति है आयुष्य प्राण। इस प्रकार हमारी सारी शक्तियां प्राण के द्वारा अनुप्राणित हैं। इसलिए प्राण का ज्ञान और प्राण की खोज बहुत आवश्यक है। ___आज विज्ञान के क्षेत्र में 'बायो प्लाज्मा' यह नया शब्द प्रचलित हुआ है। यह चौथा आयाम है। यह तैजस शरीर का संवादी-सूत्र जैसा लगता है। प्रश्न होता है कि प्राण का मुख्य केन्द्र कहां है? प्राचीन योग ग्रन्थों में माना है कि प्राण का मुख्य केन्द्र है नासाग्र। पर हृदय, नाभि और पैर के अंगठे तक प्राण रहता है। 'बायो प्लाजमा' के विषय में वैज्ञानिक मान्यता यह है कि यह सघन रूप में मस्तिष्क में रहता है और यह हमारी स्नायविक कोशिकाओं तथा नाड़ीतंत्र में सक्रिय रहता है। प्राण को जानने का हमारा मुख्य उद्देश्य यह है कि इसके बिना आध्यात्मिक विकास कभी भी नहीं हो सकता। जो व्यक्ति प्राणशक्ति को जितना बचा पाता है, उतना ही यह विकास कर लेता है। दो बातें हैं, प्राण को जानना और प्राण को बचाना, उसको कम खर्च करना। दोनों बातें जरूरी हैं। पहले जानना जरूरी है, बचाने की बात जाने बिना नहीं आती।
एक लकड़हारा लकड़ियों का गट्ठर लाता, बेचता और अपना भरण-पोषण करता। रोज का यह क्रम था। एक दिन वह गट्ठर लेकर आया। उसने देखा कि सत्संग हो रहा है, लोगों की भीड़ है। उसने सोचा, इतने लोग सुनते हैं तो मैं भी सुनूं। वह आया। गट्ठर को बाहर एक ओर रखकर प्रवचन सुनने लगा। सत्संग का पूरा स्थल सुवास से महक उठा। लोगों को आश्चर्य हुआ। भीनी-भीनी सुगंध से वे ओत-प्रोत हो गये। सुगंध कहां से आ रही है, यह किसी को ज्ञात नहीं हुआ। सत्संग संपन्न हुआ। लोग प्रवचन कक्ष के बाहर आए। उन्होंने जान लिया कि सुवास गट्ठर में से आ रही है। उन्हें चन्दन की पहचान नहीं थी। एक आदमी ने उस गट्ठर में से एक लकड़ी निकाली और पूछा क्या यह लकड़ी बेचोगे? लकड़हारे ने कहा कितने पैसे दोगे? उसने कहा-एक लकड़ी का एक रुपया। गट्ठर में पचास-साठ लकड़ियां थीं। उसने साठ रुपयों में सभी लकड़ियां खरीद लीं। लकड़हारे को आश्चर्य हुआ। उसने सोचा, रोज तो मैं गट्टर को पांच-सात आने में ही बेच डालता हूं और आज पचास-साठ रुपये मिले, यह क्या? वह एक समझदार व्यक्ति के पास गया। उसको सारी बात बताई। उस
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