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सोया मन जग जाए ग्लेन्ड के द्वारा सूचित किया जा सकता है, पर थाईराइड ग्लेन्ड विशुद्धि-केन्द्र नहीं है। वहां जो विद्युत्-चुंबकीय-क्षेत्र बनता है, वह चैतन्य केन्द्र है। वहां ऊर्जा का प्रवाह बनता है।
स्थूल शरीर की जानकारी के लिए आज का शरीर-शास्त्र बहुत उपयोगी है। किन्तु साधना करने वाला व्यक्ति केवल स्थूल शरीर को ही नहीं जानता, उस स्थूल शरीर में जो शक्ति-केन्द्र है, जहां शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह है, उन्हें भी जानना जरूरी है। वह है हमारा तैजस शरीर, प्राणधारा। इसका ज्ञान बहुत आवश्यक है।
आयुर्वेद में शरीर के साथ-साथ प्राण की चर्चा है। प्राण पांच बतलाए गए हैं प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। वहां पांज उपप्राण भी बतलाए हैं। योग के ग्रन्थों में प्राण की विशद चर्चा प्राप्त है। जैन आगम साहित्य में दस प्रकार के प्राण की चर्चा है। चीन में जेन साधना पद्धति में प्राण की प्रमुखता रही और वहां प्रचलित एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का आधार प्राण रहा। यह प्राण पर आधारित चिकित्सा पद्धति है। प्राण के आधार पर बिन्दुओं को छुआ जाता है और रोग की चिकित्सा हो जाती है। कहां-कहां प्राण के स्रोत हैं, सेंटर हैं, किस सेंटर को दबाने से या प्रेशर देने से प्राण के प्रवाह को संतुलित किया जा सकता है, यह सारी जानकारी उसमें है। आयुर्वेद की परिभाषा थी कि वान, पित्त और कफ-इन तीन दोषों का साम्य है स्वास्थ्य और वैषम्य है रोग। प्राण-चिकित्सकों की परिभाषा थी कि प्राण का संतुलन है स्वास्थ्य और असंतुलन है रोग।
पूरे शरीर में प्राण का प्रवाह है। योग के ग्रन्थों में लिखा गया कि जो साधक प्राण-नाड़ियों को नहीं जानता, वह साधना में सफल नहीं हो सकता। यहां नाड़ी का अर्थ है प्रणाली। प्राण की प्रणालियां हैं, जिनमें से प्राण तत्त्व प्रवाहित होता है। साधक को जानना आवश्यक है कि किस मार्ग से प्राण ऊपर जाता है और किस मार्ग से प्राण नीचे आता है। इसके यात्रापथ का ज्ञान बहुत जरूरी है। इसे जानकर ही श्वास पर नियंत्रण किया जा सकता है। श्वास का क्षेत्र बहुत सीमित है। आदमी श्वसन क्रिया करता है। श्वास नाक से श्वास-नलिका में जाता है और फुप्फुस में जाकर समाप्त हो जाता है। बस, इससे आगे उसका क्षेत्र नहीं है। किन्तु प्राण पूरे शरीर में जाता है। उसका क्षेत्र है पूरा शरीर। शरीर का हर भाग प्राण द्वारा संचालित है। प्राण हमारी जीवनी शक्ति है। सारी क्रियाएं और प्रवृत्तियां प्राण द्वारा संचालित हैं। हम इन्द्रियों से काम लेते हैं। इन्द्रियां हैं और उनके पीछे एक शक्ति है इन्द्रिय प्राण। नाक से श्वास लेते
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