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________________ . २९. प्राण और पर्याप्ति सूक्ष्म शरीर के विषय में जितनी जानकारी अध्यात्म शास्त्र में है, उतनी विज्ञान में नहीं है। स्थूल शरीर के विषय में जितनी जानकारी आज के शरीर-शास्त्र में है, उतनी जानकारी पुराने ग्रन्थों में नहीं है। आज के शरीर-शास्त्र में कोशिका से लेकर पूरे शरीर में जो कुछ है उनका विशद वर्णन प्राप्त है। प्रेक्षाध्यान का अभ्यासी इसीलिए ध्यान के साथ-साथ शरीर शास्त्र को भी पढ़ता है और उसमें अपनी शक्ति का नियोजन भी करता है। क्योंकि शरीर के विषय में कुछ महत्वपूर्ण निर्देश हैं, पर विस्तार उपलब्ध नहीं है। उनमें महत्वपूर्ण है प्राण के तथ्यों की जानकारी, प्राण के प्रवाहों की जानकारी। यह अभी शरीर-विज्ञान का विषय नहीं बन पाया है। __ सूक्ष्म शरीर निरवयव होता है। उसमें अवयव नहीं होता। तैजस और कर्म-शरीर ये दोनों सूक्ष्म शरीर अवयव-शून्य हैं। स्थूल शरीर में अवयव होते हैं। हाथ, पैर, सिर, पेट, आंख आदि अवयव हैं। इन अवयवों की जानकारी शरीर-शास्त्र में विस्तार से प्राप्त है। प्राण अवयव नहीं है। वह अवयवों का संचालक है। वह अवयव नहीं है इसलिए यंत्रों का विषय नहीं बना। उसे पकड़ा नहीं गया। हठयोग में चक्रों की बात आती है। आज के डाक्टरों ने चक्रों की खोज की, पर वे सफल नहीं हो सके, क्योंकि उन्होंने चक्रों को भी अवयव समझा। अवयवों को पकड़ा जा सकता है और जब कोई भी अवयव पकड़ में नहीं आया तब शरीरशास्त्रियों ने कह डाला कि चक्रों का प्रतिपादन काल्पनिक उड़ान है। वास्तविकता दूसरी है। चक्र शरीर के अवयव नहीं हैं। ये तैजस क्षेत्र हैं, विद्युत्-चुंबकीय-क्षेत्र हैं। इन्हें हम एलेक्ट्रो-मेगनेटिक-फील्डस् कह सकते हैं। यहीं से ऊर्जा का प्रवाह प्रवाहित होता है। शक्तियों का संचालक यही है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में तेरह चैतन्य-केन्द्रों का प्रयोग कराया जाता है। उनमें जीभ का केन्द्र, आंख और कान का केन्द्र तथा नाक का केन्द्र –ये तो अवयव हैं ही। ये अवयव शक्तिशाली केन्द्र हैं। नाक प्राणकेन्द्र है, चक्षु ब्रह्य-केन्द्र है, जीभ अप्रमाद केन्द्र है। किन्तु कुछ चैतन्य-केन्द्र ऐसे हैं, उनमें अवयव का संकेत है, पर वे अवयव नहीं हैं। आनन्द-केन्द्र को थाइमस ग्लेन्ड के द्वारा सूचित किया जा सकता है, पर थाइमस ग्लेन्ड आनन्द-केन्द्र नहीं है। विशुद्धि-केन्द्र को थाइराइड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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