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________________ 210 सोया मन जग जाए कारण उनके सूक्ष्मतर शरीर में खोजा जा सकता है। गांधी का सूक्ष्म शरीर तैजस शरीर और सूक्ष्मतर शरीर—कर्म-शरीर-दोनों आकर्षक और शक्ति-संपन्न थे। उन दोनों शरीरों का ही यह आकर्षण था कि करोड़ों लोग उनके भक्त और प्रशंसक बन सके। वह चुंबक था, जो सबको अपनी ओर खींच रहा था। तैजस शरीर को चुंबक शरीर कहा जा सकता है।। हम फिर इस बात पर ध्यान दें कि व्यक्तित्व और कर्तृत्व की व्याख्या के लिए सूक्ष्म शरीर की व्याख्या बहुत आवश्यक है। जब हम सूक्ष्म शरीर की भूमिका पर जाते हैं तब अनायास ही अनेक समाधान प्राप्त हो जाते हैं। आज शरीर-विज्ञान के आधार पर अनेक बातों का समाधान प्रस्तुत किया जाता है कि आदमी लंबा क्यों? ठिगना क्यों ? शरीर की अमुक-अमुक बनावट क्यों? अन्त:स्रावी ग्रन्थियों के आधार पर इनका समाधान खोजा गया है। किन्तु अनेक प्रश्न ऐसे हैं, जो आज भी असमाहित हैं। मानस-शास्त्रियों ने मानसिक संरचना के आधार पर अनेक प्रश्नों के समाधान प्रस्तुत किए हैं, फिर भी अनेक प्रश्न ज्यों के त्यों बने हुए हैं। इन सबका कारण यह है कि सूक्ष्म शरीर की भूमिका पर पहुंचे बिना इनका समाधान नहीं दिया जा सकता। स्राव को पकड़ा गया, पर अमुक प्रकार का स्राव क्यों होता है, यह नहीं खोजा गया। आंख से दिखना, कान से सुनना बंद हो गया। सीधा-सा उत्तर होगा कि उन-उन अवयवों में विकृति आ गई, इसलिए ऐसा हुआ। पर प्रश्न है, विकृति क्यों आई? आज के डाक्टर इन विकृतियों का कारण जीवाणु या कीटाणु मानते हैं। यह पूर्ण सत्य नहीं है। अध्यात्म के आचार्यों ने कहा कि रोग या विकृति के अनेक कारणों में एक कारण है कर्म-शरीर। अनेक रोग कर्मज होते हैं। ये रोग या व्याधियां कर्म-शरीर से आती हैं। इनका इलाज न डाक्टर कर सकता है और न वैद्य। अपने कर्म-संस्कारों को क्षीण करने पर ही उनका सामाधान मिल सकता है। कर्म की बीमारी कर्म के विपाक के साथ आती है। वह अन्यान्य साधनों से पकड़ में नहीं आ पाती। हमें मूल कारण पर प्रहार करना होगा। जगत् की सारी समस्याएं वातावरण, परिस्थिति आदि की समस्याएं नहीं हैं, केवल स्थूल जगत् की समस्याएं नहीं हैं। उनमें से बहुत सारी समस्याएं सूक्ष्म जगत् यानी कर्म-शरीर से संपादित समस्याएं हैं। हम इनको जानें, समझें और इनसे निबटने का मार्ग अपनाएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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