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२८. सूक्ष्म शरीर और पुनर्जन्म
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हम सब स्थूल शरीर में जीते हैं, इसलिए इसके नियम स्पष्ट हैं। हम इन्हें जानते हैं । एक दिन बच्चा जन्मता है, बढ़ता है और अनेक अवस्थाओं को पार करता जाता है । शरीर बूढ़ा होता है, जीर्ण-शीर्ण होता है और एक दिन निष्प्राण बन जाता है, प्राण समाप्त होता है और वह चला जाता है। ये सारे परिवर्तन हमारे प्रत्यक्ष हैं । हम इन्हें जानते हैं। पर इस स्थूल शरीर के आधार पर व्यक्तित्व की व्याख्या नहीं की जा सकती। इसीलिये दूसरी खोज शुरू हुई। इस स्थूल शरीर के भीतर कुछ और भी है । यह शरीर हमारी सारी गतिविधियों और कार्यों की व्याख्या के लिये पर्याप्त नहीं है। मनुष्य ऐसे कार्य भी करता है जो इस स्थूल शरीर के परे की बात है । कुछ न कुछ और भी होना चाहिये। जब खोज शुरू हुई और अन्तदृष्टि के द्वारा भीतर पहुंचा गया तो ज्ञात हुआ कि इस शरीर के भीतर एक शरीर और है । वह है--- तैजस शरीर, विद्युत् शरीर । इसीसे स्थूल शरीर की सारी प्रवृत्तियां संचालित होती हैं ।
प्राणशक्ति हमारी हर गतिविधि को प्रभावित करती है, पर उससे भी हमारे व्यक्तित्व की पूरी व्याख्या नहीं होती । प्रश्न बना ही रहा कि आदमी के आचरण को कौन प्रभावित करता है ? उसे कौन चला रहा है ? आदमी के चिन्तन और भावों को कौन प्रभावित कर रहा है ? जन्म और मृत्यु को कौन प्रभावित कर रहा है ? सुख-दुःख के संवेदन को, ज्ञान और दर्शन की शक्ति को कौन प्रभावित कर रहा है ? ये अनेक प्रश्न हैं। ये अज्ञात ही रहे। खोज फिर आगे बढ़ी। यह ज्ञात हुआ कि इन प्रश्नों की व्याख्या न स्थूल शरीर से हो सकती है, न तैजस या विद्युत् शरीर से हो सकती है । खोज और आगे बढ़ी। तब ज्ञात हुआ कि भीतर एक शरीर और है जो इन सारी प्रवृत्तियों को प्रभावित कर रहा है, संचालन और नियमन कर रहा है । वह सूक्ष्मतर शरीर है । उसे जैन पारिभाषिक शब्दावलि में 'कार्मण शरीर' कहा जाता है। उसकी रश्मियां स्थूल शरीर को और तैजस शरीर को प्रभावित करती हैं ।
तीन हैं— स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्मतर शरीर । स्थूल शरीर प्रत्यक्ष है। सूक्ष्म शरीर प्रत्यक्ष नहीं है, पर कुछ स्थितियों में उसका प्रत्यक्षीकरण किया जा सकता है। विशेष प्रयोगों और साधनों द्वारा उसे देखा जा सकता है। जब
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