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अनावृत चेतना का विकास
205 की अन्यान्य प्रक्रियाओं में प्रेक्षा-ध्यान की प्रक्रिया अधिक मूल्यवान् है, इसलिए नहीं कि हम इसे अपनाए हुए हैं, परन्तु इसलिए कि प्रेक्षा की बात, देखने की बात अनावृत चेतना की बात है। देखता वही है जिसकी चेतना अनावृत है। आवृत चेतना वाला देख नहीं सकता। आंखों पर पट्टी बंधी हो तो देखना मुश्किल हो जाता है। आवृत चेतना पट्टी है। जब चेतना पर पट्टी होती है, आवरण होता है, तब देखना नहीं होता। उस पट्टी को खोलना या आवरण को हटाने का एक प्रयत्न है ध्यान । देखना सीखना भी एक कठिन कार्य है। देखना एक कला है। कैसे देखें? हमें उसे देखना है जो दृश्य नहीं है। जब तक दृश्य ही देखते रहेंगे, सत्य हाथ नहीं आएगा। केवल छिलके को देखना नहीं है। देखने का अर्थ है—पार दर्शन । केवल आर को नहीं, पार को देखना है। ___गुप्तचर आदमी को नहीं देखता। वह स्थूल में नहीं उलझता। वह आकार को नहीं, आकर में छिपी सूक्ष्म रेखाओं को देखता है और अपराधी या अनपराधी का निर्णय कर लेता है। 'मुखाकृति विज्ञान' का विद्यार्थी चेहरे की बनावट को देखकर अनेक बातें जान लेता है। देखने के अनेक स्तर हैं। देखने की सूक्ष्मता जागनी चाहिए। श्वास को देखते हैं तो श्वास के रंग को देखना, श्वास की सूक्ष्मता को देखना है। उसका रंग श्वेत, लाल, पीला, नीला, मटमैला होता है। कभी वह काला रंग का भी होता है। जब व्यक्ति बौद्धिक व्यायाम करता है तब श्वास का रंग पीला, बुरा चिन्तन करता है तो काला हो जाता है। जब वह विधायक चिंतन में लगा रहता है तब श्वास का रंग श्वेत हो जाता है। रंग बदलते रहते हैं। श्वास का रस भी होता है। कभी खट्टा होता है तो कभी मीठा। अन्यान्य रस भी होते हैं। श्वास में गंध होता है। कभी सुगन्ध और कभी दुर्गन्ध । इस प्रकार श्वास में गंध है, रस है, वर्ण है और स्पर्श है। इन सबको पकड़ना है, देखना है। सूक्ष्म से सूक्ष्मतर और अन्त में सूक्ष्मतम। यह देखने का विकास करना है। जैसे-जैसे देखने की शक्ति विकसित होती है, दृश्य बदलते चले जाते हैं। वे एकरूप नहीं रहते। जब हम स्थूल दृष्टि से देखते हैं तो दृश्य एक प्रकार का होता है और सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर वह दूसरे प्रकार का हो जाता है। यह विकास अनावृत चेतना की दिशा में आगे बढ़ने का एक उपाय है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, दृश्य बदलते जाएंगे और तब मूर्छा बढ़ती है। सूक्ष्म और सूक्ष्म को देखने से वह टूटती है, क्योंकि देखने का कोण ही बदल जाता है।
खंड-चेतना को समाप्त करने और अखंड चेतना या अखंड व्यक्तित्व को प्राप्त करने की दिशा में देखने की शक्ति का विकास एक कारगर उपाय है।
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