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________________ 19 क्या विचारों को रोका जा सकता है? ___ ध्यान का प्रयोग भाव-परिवर्तन का प्रयोग है। जितने निषेधात्मक भाव हैं. वे सब बदलें और उनके स्थान पर विधायक भाव आएं। इस बिन्दु पर आकर जब हम सोचते हैं तो विचारों के प्रवाह की बात सामने आती है। विचारों को रोकना भी है और विचारों को नहीं भी रोकना है, यह निष्कर्ष निकलता है। जो विचार रागात्मक भाव की प्रेरणा से प्रेरित होकर आता है, उसे रोकना है। जो विचार ज्ञानात्मक भावना से प्रेरित होकर आता है, उसे नहीं रोकना है। विचार-विकास के साथ-साथ वस्तु जगत् का भी विकास हुआ है। हम कैसे भूलेंगे इस बात को कि देखने की सुविधा के लिए चश्मे का विकास हुआ। गति की तीव्रता के लिए मोटर और हवाई जहाज का विकास हुआ। तलवार, बंदूक, स्टेनगन और एटम बम का विकास हुआ विनाश के लिए। इन दोनों के पीछे विचार-विकास का हाथ है। उपयोगिता की पृष्ठभूमी में भी विचार-विकास है और विनाश की पृष्ठभूमि में भी विचार-विकास है। सृजन और संहार—दोनों विचार-विकास के ऋणी हैं। किस विचार को रोकें और किसको न रोकें, यह विवेक आवश्यक है। जब हर विचार को रोकेंगे तो विकास का द्वार भी बंद हो जाएगा। विकास को कोई रोकना नहीं चाहता। यदि विकास का द्वार बंद हो जाए तो फिर पशु में और मनुष्य में कोई अन्तर नहीं रहेगा। मनुष्य ने इसी आधार पर विकास किया है, आदिम युग से आज के युग तक पहुंचा है कि वह निरन्तर विचारों का विकास करता रहा है। वह सोचता है पशु नहीं सोचता, इसलिए वह हजार वर्ष पहले जहां था, आज भी वहीं है। हजार वर्ष पहले भी बंदर पेड़ पर रहते थे और आज भी पेड़ पर ही रहते हैं। उन्होंने घर बनाना सीखा ही नहीं। आदमी की भी यही कहानी है। वह सोचना जानता है, इसलिए निरन्तर सोचता रहा और आज वह भूमी पर नहीं आकाश में बसने की सार्थक कल्पना कर रहा है। यह सारा विकास और चमत्कार विचार का ऋणी है। विचार आता है और उसके बाद उसकी क्रियान्विति होती है। विचार ने विकास का द्वार खोला है तो हम उसे रोकने की बात क्यों सोचें ? ध्यान करने वाले साधक विचारों को रोकना क्यों चाहते हैं ? यह प्रश्न है। इसका समाधान है कि यदि विचार के द्वारा केवल विकास ही होता तो उसे रोकने की बात नहीं सोची जाती। किन्तु विचारों ने मनुष्य जाति का जितना कल्याण किया है, उससे अधिक अकल्याण किया है। उसने श्रेय साधा है तो श्रेय में अनेक बाधाएं भी उपस्थित की हैं। इसलिए विचारों को रोकने की बात प्राप्त होती हैं। विचारों के उच्छृखल प्रवाह को चालू नहीं रहने देना चाहिए। उसको रोकना ही श्रेयस्कर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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