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सोया मन जग जाए दिया। हमें साथ ही साथ यह भी कहना होगा कि भाव ने विचार को जन्म दिया और विचार ने विनाश को जन्म दिया। विकास और विनाश—दोनों का सम्बन्ध विचारों से है और उन विचारों का सम्बन्ध भाव से है। भाव, विचार और विकास। भाव, विचार और विनाश। यह सूत्र बन गया।
अध्यात्म के आचार्यों ने कहा निष्काम कर्म करो। कृष्ण ने कहाअनासक्त कर्म करो। यह बहुत सीधी-सी बात लगती है। पर प्रश्न है कि निष्काम और अनासक्त कैसे रहा जा सकता है? निष्काम और अनासक्ति की साधना कठिनतम साधना है। जब तक रागात्मक और द्वेषात्मक भावों पर हमारा नियंत्रण नहीं हो जाता, तब तक निष्काम और अनासक्त योग नहीं सधता। आसक्ति की तीव्रता बनी की बनी रहती है। एक बहाना जरूर मिल जाता है कि आदमी अकरणीय कार्य भी कर लेता है और जब उसका समाधान देना होता है तब निष्काम कर्म और अनासक्ति की दुहाई देने लग जाता है। वह कह देता है, मैंने जो किया वह पूर्ण निष्काम भाव से किया है, अनासक्त भाव से किया है। यह बहाना मात्र है। निष्काम कर्म और अनासक्त योग की साधना में बहुत तपना पड़ता है, खपना पड़ता है। यह इतनी सरल साधना नहीं है।
प्रेक्षाध्यान की साधना निष्काम कर्म और अनासक्त योग की साधना है। यह भावशुद्धि की साधना है। यही इसका मूल उद्देश्य है। प्रेक्षाध्यान की साधना में यह संकल्प दोहराया जाता है—'मैं भावशुद्धि के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कर रहा हूं। स्वास्थ्य लाभ और मन को निर्मल बनाने के लिए नहीं, केवल भावशुद्धि के लिए प्रयोग कर रहा हूं।' जब भाव निर्मल हो जाता है, तब मन निर्मल बन जाता है और शरीर स्वस्थ हो जाता है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भावनात्मक स्वास्थ्य पर निर्भर है।
शारीरिक बीमारियों को मिटाने के लिए फिजीशियन दवा देते हैं। मानसिक बीमारियों को मिटाने के लिए मनोचिकित्सक दवा देते हैं। किन्तु हमने देखा है, मानसिक रोगों की चिकित्सा करने वाला स्वयं मन की बीमारी का शिकार है। ऐसी स्थिति में वह दूसरों की चिकित्सा कैसे कर पाएगा? मानसिक बीमारी कम्पोज या अन्यान्य गोलियों से मिटने वाली नहीं है। उसका उद्गम भावना से होता है। भावना का परिवर्तन किए बिना वह नहीं मिटती। इसी प्रकार भावना के परिवर्तन के बिना अनेक शारीरिक बीमारियां भी नहीं मिटतीं। क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अहं आदि भाव जब तक सक्रिय रहते हैं, तब तक न मन स्वस्थ रहता है और न शरीर स्वस्थ रहता है। जब इन भावों में परिवर्तन आता है तब मन भी स्वस्थ बन जाता है और शरीर भी स्वस्थ हो जाता है।
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