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२. क्या विचारों को रोका जा सकता है?
विचार अच्छा है। विचार बुरा है। इसका अर्थ है कि कोई उसे अच्छा या बुरा बना रहा है। __ हवा ठण्डी है। हवा गर्म है। इसका अर्थ है कि कोई उसे ठण्डा या गर्म बना रहा है।
हम विचार को सीधा पकड़ते हैं। उसको अच्छा या बुरा बनाने वाला पर्दे के पीछे छिपा रहता है। कौन बना रहा है उसे अच्छा या बुरा? हम विचार को रोकना चाहते हैं, क्योंकि अच्छा विचार नहीं आ रहा है। पर विचार को रोककर करेंगे क्या? कैसे रोक पाएंगे? जब तक भाव को नहीं पकड़ेंगे तब तक बेचारा विचार क्या करेगा? वह तो बेचारा है। उसे पकड़ कर क्या करेंगे? पकड़ना है भाव को। प्रश्न होना चाहिए कि क्या भाव को बदला जा सकता है? चिन्तन या विचार को बदलना जरूरी नहीं है। जरूरी है भाव को बदलना। विचार महान् सम्पदा है तो बड़ा खतरा भी है। जितने-जितने खतरे पैदा हुए हैं, वे सब विचार ने उत्पन्न किए हैं। किन्तु यह भी एकांगी सत्य है। यह विचार पर आरोपण मात्र है। विचार न सम्पदा है और न खतरा। सम्पदा है भाव और खतरा है भाव। पूरा व्यक्तित्व भावों से निर्मित व्यक्तित्व है। विचार उसकी एक तरंग है, एक रश्मि है। वह समग्र नहीं है। विचार के पीछे जो है, वह समग्र है। जब तक उस पर हमारा ध्यान केन्द्रित नहीं होगा तब तक विचारों को रोकने की उधेड़बुन में समय बीतेगा, अर्थ कुछ भी नहीं होगा। ___ जब व्यक्ति ध्यान करने बैठता है तब विचार बहुत आते हैं। व्यक्ति का पहला प्रश्न होता है कि उन विचारों को कैसे रोकें? मैं पूछता हूं उन्हें रोकने की क्या आवश्यकता है? विचार आते हैं, आने दें। जो अपने आप आते हैं, उन्हें आने दें, रोकें नहीं। ध्यान का अर्थ विचारों को रोकना नहीं है। उसका अर्थ है भावों को बदलना। जब तक रागभाव और द्वेषभाव है तब तक विचार आएंगे। जब ये दोनों भाव सक्रिय होते हैं तब विचारों की श्रृंखला चल पड़ती है। उसको रोका नहीं जा सकता। राग और द्वेष विचारों के घटक हैं। यह जो कहा जाता है कि मनुष्य का विकास विचारों के आधार पर हुआ है, यह नम्बर दो की बात है। मुख्य बात है कि मनुष्य का विकास भाव जगत् से हुआ है। भावना ने विचार को जन्म दिया और विचार ने विकास का द्वार खोल
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