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सोया मन जग जाए
जा सकता है। नदी पार करने पर नौका को छोड़ देना होता है। आलम्बन आवश्यक होता है, पर आलम्बन से चिपक जाना अच्छा नहीं होता। यदि ध्यान करने वाला आलम्बन से चिपका रहे तो ध्यान उसके लिए खतरनाक बन जाता है। ध्यान करने वाले का ध्येय होना चाहिए कि उसे निरालम्ब बनना है, सहारा छोड़ देना है। सहारा किसी का नहीं, केवल अपना सहारा। अपना सहारा ही अन्तिम सहारा होता है। प्रारम्भ में हम श्वास को आलम्बन बनाते हैं। इस आलम्बन से हम स्मृति, कल्पना और चिन्तन से बच जाते हैं। एक के सहारे से हम सभी से बच जाते हैं। यह भटकाव से बचने के लिए आलम्बन है। यह व्यर्थ नहीं है। धीरे-धीरे हम इसके सहारे निरालम्ब स्थिति तक पहुंच जाते हैं।
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