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सोया मन जग जाए जागरूक होता है उतना ही ज्ञाता और द्रष्टा की चेतना का विकास होता है और कर्ता की चेतना में आने वाले रोष और बाधाएं कम हो जाती हैं। धीरे-धीरे एक दिन वे सब समाप्त हो जाती हैं। __ चैतन्य-विकास की यह तीसरी मंजिल है। इसका विकास जरूरी है। ध्यान के अभ्यास-काल में हम यह प्रयोग करें कि घटनाओं से अप्रभावित रहकर, जितना जो कुछ शरीर में हो रहा है, उसे जानते-देखते रहें। शरीर में दर्द है। एकाग्रता में उसकी तीव्र अनुभूति होगी। पर दर्द को जान लिया, उससे प्रभावित नहीं हुये। प्रिय-अप्रिय संवेदन से भी प्रभावित नहीं हुये। यदि यह क्रम चला तो धीरे-धीरे चलते-चलते हम उस बिंदु पर पहुंच सकते हैं जहां ज्ञाता-द्रष्टा की चेतना पूर्ण विकसित हो जाए और अप्रमाद की स्थिति प्राप्त हो जाए। दुनिया में घटित होने वाली अनेक घटनाओं के प्रभाव से हम अप्रभावित रह सकें। यह अप्रभावित चेतना एक ऐसा मार्ग है जिसके द्वारा आदमी हजारों समस्याओं और हजारों दुःख के बीच रहकर भी अपने सुख और आनन्द को अबाधित और अव्याबाध रख सकते हैं।
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