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________________ 186 सोया मन जग जाए कहा—तुम कुछ भी कहो, सोचो, मेरी विजय का मूल कारण है मेरी मां। यदि मां का सही परामर्श नहीं मिलता तो मैं कभी सफल नहीं हो पाता। मैं तुम्हारी बातों से सहमत नहीं हूं। __यदि सिकन्दर अपने प्रति जागरूक नहीं होता तो इतना प्रभावित हो जाता मन्त्री की बात से कि अपनी मां के प्रति अन्याय कर देता। ऐसे अन्याय बहुत होते हैं। किसी की सुनी सुनाई बात पर न जाने कितने बड़े-बड़े अनर्थ हो जाते हैं और इसलिए होते हैं कि आदमी अपने प्रति जागरूक नहीं होता। व्यावहारिक स्तर पर भी जो अपने प्रति जागरूक नहीं होता, दूसरे से प्रभावित होता है तो बड़ी कठिनाइयां पैदा करता है। आन्तरिक स्तर पर जो अपनी आत्मा के प्रति जागरूक नहीं होता तो निश्चित ही समस्या पैदा करता है। हमें अप्रभावित रहने का अभ्यास करना है। बाहरी स्थिति से हम कैसे अप्रभावित बनें? कोई तूफान आएगा उसका प्रभाव सब पर पड़ेगा। सौर-मंडल के विकिरण का प्रभाव सब पर पड़ेगा। इतना धुंआ, इसका प्रभाव सब पर पड़ेगा। कोलाहल और शोर का प्रभाव सब पर पड़ेगा। कैसे बचा जाए, बड़ा कठिन है। कहां से शुरू करें अप्रभावित होना? हमें आन्तरिक प्रभाव से बचना है। हमारे भीतर में जो हमें प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं उनसे अप्रभावित होने का अभ्यास करना है। अपने कर्म-विपाक से अप्रभावित रहने का अभ्यास, अपने आन्तरिक रसायनों से अप्रभावित रहने का अभ्यास करना है। जब हम भीतरी प्रभावों से बचने का अभ्यास करेंगे तो शायद बाहरी प्रभाव भी हम पर कम पड़ेंगे। उनका असर कम होगा। कोलाहल का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। ध्वनि का प्रदूषण भी बहुत खतरनाक होता है। वह कान के परदे पर ही प्रभाव नहीं डालता, किन्तु दिमाग पर भी प्रभाव डालता है। जिस व्यक्ति में एकाग्रता का अभ्यास हो गया है, वह उससे भी बच जाता है। चंचलता में जितना कोलाहल बाधा डालता है एकाग्रता में कठिनाई पैदा नहीं करेगा। और विकास तो यहां तक हो सकता है कि घनीभूत एकाग्रता हो जाए तो बाहर का भयंकर कोलाहल उसके लिए नगण्य बन जाएगा। चेतना की यह स्थिति भी पैदा की जा सकती है। हम आंतरिक परिवर्तन की बात करें कि भीतर में कैसे अप्रभावित रहें। हम उस चेतना का विकास करें कि भीतर में होने वाले परिवर्तन हमें प्रभावित न कर सकें। उस अप्रभावित अवस्था में एक चेतना विकसित होती है। उस चेतना का नाम है ज्ञाता-द्रष्टा चेतना। जो जानती है और देखती है पर प्रभावित नहीं होती। जानना और देखना पर घटना से प्रभावित नहीं होना। एक संकड़ी पगडंडी है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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