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सोया मन जग जाए
खुश की पूछो मत, और आधा घंटा बाद इतना नाराज कि भृकुटि तनी हुई है कि देखने वाला पास ही नहीं आ सकता। कभी क्रोध, कभी शांत और कभी वीतराग की मुद्रा, कभी राक्षसी मुद्रा। इतने सांग बदलता है और इतने जल्दी-जल्दी बदलता है कि उसकी अनेकरूपता की कोई कल्पना नहीं की जा सकती। यह सारा परिवर्तन इसलिए होता है कि मनुष्य में प्रमाद की चेतना है। प्रमाद पीछे-पीछे चल रहा है। जैसे ही अप्रमाद की चेतना जागती है यानि अप्रभावित होने का अभ्यास करता है तब उसका बहुरुपियापन छूट जाता है। यह अभ्यास की घटना से प्रभावित नहीं होता, घटना को जानना और देखना व अनुभव करना, पर उससे प्रभावित न होना, यह बिल्कुल नया प्रयोग है। घटना तो पीछा करती है, पीछा नहीं छोड़ती। ___ एक आदमी जा रहा था बगीचे में। इतने में पीछे से एक सिपाही आकर बोला, तम्हें पता नहीं है कि इस बगीचे में गधा लाना वर्जित है। वह बोला, मुझे क्यों आरोपित कर रहे हो? मैं तो कोई गधा नहीं लाया। सिपाही बोला- तुम्हारे पीछे-पीछे गधा आ रहा है। उसने कहा कि मेरा गधा नहीं है। सिपाही ने कहा, तो फिर वह तुम्हारे पीछे क्यों आ रहा है? उसने कहा, मेरे पीछे तो तुम भी आ रहे हो और गधा भी आ रहा है। __आदमी के पीछे गधा भी चलता है और सिपाही भी चलता है। पर जब अपनाता नहीं है तो न गधे से मतलब और न आदमी से मतलब। हमारे पीछे प्रमाद बहुत काम करता है। किन्तु हम उसे अपनाएं नहीं, अपना न बनाएं तो प्रमाद हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं बनता। किन्तु आदमी घटना से प्रभावित होता है और घटना को अपना लेता है। वहां समस्याएं और विघ्न पैदा होते हैं, बाधाएं पैदा होती हैं। अभ्यास दूसरे सोपान में शुरू तो हो जाता है, किन्तु परिपक्व नहीं होता। विघ्न बहुत आते रहते हैं, प्रमाद आता रहता है। एक सूक्ष्म विश्लेषण अध्यात्म का है कि एक मुनि बन गया। मुनि बना, व्रत की चेतना विकसित हो गई, फिर भी एक दिन में अनेक बार वह अव्रत की चेतना में चला जाता है। एक जीवन में हजारों बार अव्रत की चेतना में चला जाता है। व्रत की चेतना में जीने वाला अव्रत की चेतना में चला जाता है। बहुत सीधी भाषा में आप समझें कि एक साधु अनेक बार असाधुत्व में चला जाता है। इसका कारण है कि प्रमाद विघ्न डालता है। प्रमाद जब-जब तीव्र बनता है तो व्रत की चेतना को अव्रत में बदल डालता है। साधना में बहुत विघ्न है। जब तक अध्यात्म परिपक्व नहीं होता तब तक विघ्नों का निवारण नहीं हो सकता। विघ्न सताते रहते हैं। इन्हें बदलने के लिए तीव्र अभ्यास की जरूरत है।
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