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२५. ज्ञाता-द्रष्टा चेतना का विकास
चैतन्य विकास के दूसरे सोपान में आदतें बदलती हैं, आकर्षण बदलता है। तीसरे सोपान की चेतना जागती है तब जागरूकता बढ़ती है। प्रमाद कम होता है। सतत जागरूकता और सतत अप्रमत्तता बनी रहती है। आदतों के न बदलने में एक बड़ी बाधा है प्रमाद। प्रमाद बहुत विघ्न पैदा करता है। कहा गया है, कल्याणकारी कार्य बहत विघ्न वाले होते हैं। ऐसा कोई भी अच्छा काम नहीं होता जो सर्वथा निर्विघ्न हो। केवल कल्याणकारी ही नहीं, प्रत्येक कार्य में विघ्न और बाधा है। __ दुनिया में हर आदमी अनुभव करता है कि बाधाएं आती हैं, विघ्न आते हैं और इस अनुभूति के साथ बहुत सारे स्रोत रचे गए, मंत्र निर्मित किए गए, जिनके द्वारा बाधाओं का निराकरण किया जा सके, विघ्नों को टाला जा सके। ये बाधाएं क्यों आती हैं ? ये विघ्न क्यों होते हैं ? कारण भी खोजना चाहिए। विघ्नों के दो स्रोत हैं एक भीतरी, दूसरा बाहरी। कुछ विघ्न अपने आन्तरिक कारणों से पैदा होते हैं और कुछ विघ्न बाहरी कारणों से आते हैं। मनुष्य प्रभावित होता है। प्रभावित होना एक विघ्न है। परिस्थिति से प्रभावित होता है। आसपास के वातावरण से प्रभावित होता है। दूसरे की वाणी से और दूसरे के चिन्तन से प्रभावित होता है। प्रभावित होना एक बहुत बड़ी बाधा है।
अभी-अभी रूस के एक वैज्ञानिक हस्नाली ने अनुसंधान किया। उन्होंने बताया कि भूभौतिक वनस्पतियों से मनुष्य बहुत प्रभावित होता है। उस प्रभाव से कोई बच नहीं सकता। कभी वायु में तेज दबाव होने के कारण परिवर्तन हो जाता है। कभी सौर-मंडल के कारण परिवर्तन होता है। ये जो कारण हैं परिवर्तन के, इन कारणों से आदमी प्रभावित होता है। इस आधार पर उन्होंने बताया कि महीने के सारे दिन समान नहीं होते। कुछ दिन अच्छे होते हैं और कुछ दिन खराब होते हैं। कुछ दिन शुभ होते हैं और कुछ दिन अशुभ होते हैं। गुरुत्वाकर्षण की विसंगतियों से भी मनुष्य प्रभावित होता है। यह प्राचीन सिद्धान्त था ज्योतिष का कि सारे दिन समान नहीं होते। दिनों में परिवर्तन आता रहता है। कुछ दिन बहुत अच्छे होते हैं और कुछ दिन खराब माने जाते हैं। दिन नहीं एक दिन का पूरा काल-चक्र भी समान नहीं होता। परिवर्तन आता रहता है। इसीलिए शायद यह दुघडियों वाली बात चली। कौन-सा दुघडिया अच्छा
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