SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्म- तुला की चेतना का विकास जरूरी है और उस अभ्यास के लिए ध्यान जरूरी है । ध्यान क्यों करना चाहिए, यह बात बहुत स्पष्ट हो जाती है। ध्यान केवल मानसिक तनाव मिटाने के लिए नहीं, केवल स्वस्थ रहने के लिए नहीं, किन्तु प्रिय-अप्रिय संवेदनों को नियंत्रित करने के लिए है । ध्यान के अभ्यास से हम उन्हें पकड़ सकें, देख सकें और नियंत्रित कर सकें, यह अपेक्षित है । इस चेतना को जगाने का नाम है व्रत । इस चेतना को जगाने का नाम है महाव्रत । आदि यह चेतना सोयी रह जाती है तो आदमी अंधेरे में भटकता रहता है । उसका अज्ञान नहीं मिटता । जब तक अज्ञान रहता है तब तक वह विरोधाभासी जीवन जीता है। संकल्प भी चलता है और उससे उल्टा व्यवहार भी चलता है । यह विरोधाभासी स्थिति छूटती नहीं । मालिक ने नौकर से कहा--- - देखो, तुम रोज मुझे चार बजे उठा दिया करो । बस, तुम्हारा यही काम है। नौकर भोला था । वह बोला- 'मालिक ! मैं रोज ऐसा करता रहूंगा, पर मेरी एक बड़ी कठिनाई है कि मैं घड़ी देखना नहीं जानता। इसलिए आप मुझे चार बजते ही सावचेत कर दें, मैं आपको ठीक चार बजे उठा दूंगा।' यह है विरोधाभासी जीवन का एक उदाहरण । चैतन्य-विकास का दूसरा सोपान है आत्म- तुला की चेतना का विकास । जब तक अनुकूल-प्रतिकूल, प्रिय-अप्रिय —- इन द्वन्द्वों को झेलने की क्षमता नहीं जागेगी तब तक आत्मौपम्य या आत्म- तुला का सिद्धान्त केवल वाचिक स्तर पर ही सीमित रह जाएगा, व्यवहार में घटित नहीं होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only 181 www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy