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________________ 180 सोया मन जग जाए कर दी गई कि पानी को नाप - नाप कर पीना है । एक मुनि बिना नापे पानी पीने लगा। दूसरे मुनि ने उसे टोकते हुए कहा—व्यवस्था है कि पानी नाप कर पीओ । बिना नापे कैसे पी रहे हो ?' उसने कहा- पानी की क्या व्यवस्था हो सकती है । यह तो पीने के लिए ही तो है। उसने पानी पी लिया। व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया। बात मुखिया मुनि तक पहुंची। उन्होंने उस साधु को बुलाकर - तुमने व्यवस्था का अतिक्रमण क्यों किया ?' उसने कहा- 'पानी की कैसी व्यवस्था ? प्यास लगी थी । पानी पी गया । न नापा तो क्या हो गया ?' मुखिया मुनि को यह उत्तर मान्य नहीं हुआ । व्यवस्था के अतिक्रमण को ध्यान में रखकर उन्होंने उस मुनि को संघ से अलग कर दिया। कहा बात छोटी-सी लगती है, पर है बहुत बड़ी । प्यास को सहन करना अप्रिय संवेदन है, प्रिय नहीं है । प्रिय तो था पानी पीना । किन्तु जब अप्रिय संवेदन को सहन करने की क्षमता मुनि में नहीं है तो उसका मुनित्व टिकेगा कैसे ? आत्म- तुला की बात कैसे चरितार्थ होगी ? आत्म - तुला का सिद्धान्त कहता है--- तुम्हें पानी पीना है तो दूसरे को भी पानी पीना है । तुम्हें प्यास सता रही है तो दूसरे को भी प्यास सता रही है । तुम उतना ही पानी पीओ, जितना पीने से तुम दूसरों के पानी पीने में बाधक न बनो। यदि यह चेतना जग जाए तो अनेक समस्याओं का समाधान हो जाता है । यदि आदमी यह मान ले कि मुझे वैसा आचरण नहीं करना है, जिससे दूसरों के हितों में बाधा आए, दूसरों का हित खंडित हो, दूसरे कठिनाई में पड़े, दूसरों का अधिकार अपहृत हो, तो आत्म- तुला की चेतना व्यावहारिक बन सकती है। स्थान कम है। बैठने वाले अधिक हैं । व्यक्ति सोचता है, मैं आगे जाकर स्थान रोक लूं और वह पूरा कंबल बिछाकर बैठ जाता है, दूसरे चाहे बैठे सकें या नहीं। इस स्थिति में आत्म - तुला का सिद्धान्त व्यावहारिक नहीं बनता । वह व्यावहारिक तब बनता है जब व्यक्ति यह सोचता है कि रोज मैं पूरा कंबल बिछाकर बैठता था, आज स्थान कम है, इसलिए आधे आसन पर बैठूंगा, आधा आसन दूसरे के लिए छोड़ दूंगा। यह आत्म- तुला की दिशा में पादन्यास है। यह सिद्धान्त व्यक्ति के प्रत्येक आचरण में आत्मगत हो जाता है तो खान-पान, रहन-सहन आदि में कभी टकराहट नहीं होती। अत्यन्त महत्वपूर्ण है आत्म- तुला का सिद्धान्त । दूसरों को अपने समान समझना बड़ी साधना है । जब हम प्रिय-अप्रिय संवेदनों पर नियंत्रण करने की क्षमता को विकसित कर लेते हैं तब आत्म- तुला का सिद्धान्त कृतार्थ हो जाता है । व्रत या महाव्रत की भूमिका पर पहुंचने के लिए संवेदनों को सहने का अभ्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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