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सोया मन जग जाए
तांत्रिकीय उपकरण ऐसे हैं जो हिंसा में सहायक बनते हैं। तंत्रिका प्रणाली में ऐसे उपकरणों की योजना है जो हिंसा में सहायक बनती है। किन्तु मनुष्य का मस्तिष्क हिंसात्मक होता है, इसकी सत्यता संदिग्ध है।
इस उक्ति में कुछ सचाई है। हिंसा हमारी आदत है, मौलिक मनोवृत्ति नहीं। मौलिक मनोवृत्ति है—राग और द्वेष । यौगलिक जीवन समाज का प्राग्-सामाजिक जीवन था। उसमें हिंसा और युद्ध नहीं था, संग्रह भी नहीं था, न संग्रह की मनोवृत्ति थी। इसका कारण है, उन युगलों में क्रोध, मान, माया और लोभ अर्थात् राग और द्वेष बहुत मन्द होते हैं, उपशांत होते हैं, बहुत पतले होते हैं इसलिए न युद्ध की स्थिति बनती है, न आक्रामक मनोवृत्ति बनती है, न छीना-झपटी होती है, न संग्रह होता है। यदि मौलिक मनोवृत्ति हो तो उनमें भी यह सारी बातें होती। ___ हम इस आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि मूल वृत्ति या प्रकृति है राग और द्वेष। इनके आधार पर नाना प्रकार की आदतों का निर्माण होता है। अठारह प्रकार की आदतों का एक वर्गीकरण है, जिन्हें अठारह पाप कहा जाता है—प्राणापतिपात पाप, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, पर-परिवाद, रति-अरति, माया-मृषा और मिथ्यादर्शन-शल्य ये अठारह आदतें हैं। इन सब में मूलभूत है-राग और द्वेष। ये दो जटिल आदतें हैं। शेष सोलह उनकी उपजीवी आदतें या उपवृत्तियां हैं। ये मनुष्य में प्रकट होती हैं और आदमी विभिन्न प्रकार का आचरण और व्यवहार करता है। इन आदतों का संक्षिप्त वर्गीकरण कर इनको आरम्भ और परिग्रह-इन दो में समाविष्ट कर दिया गया। भगवान् महावीर ने कहा व्यक्ति के जब तक आरम्भ और परिग्रह होता है तब तक विशिष्ट ज्ञान प्राप्त नहीं होता। अतीन्द्रिय ज्ञान प्राप्त नहीं होता। जब तक आरम्भ और परिग्रह होता है आन्तरिक अनुभूति नहीं होती। हमारी दो बड़ी बाधायें हैं -आरम्भ और परिग्रह। उनकी पृष्ठभूमि में हैं-राग और द्वेष।
ध्यान का मूल उद्देश्य है—राग और द्वेष को कम करना। ध्यान का संकल्प है—'मैं चित्त शुद्धि के लिए ध्यान का प्रयोग कर रहा हूं।' चित्तशुद्धि का अर्थ है कषायों को शांत करना, राग-द्वेष को शांत करना, राग-द्वेष की तीव्रता को कम करना। जब आदमी में राग और द्वेष प्रबल होते हैं तब वह नाना प्रकार के आचरण करता है। अठारह पापों में एक पाप है— अभ्याख्यान। इसका अर्थ है आरोप लगाना, चुगली करना। यह वृत्ति जब डरती है तब आदमी दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयत्न करता है।
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