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सोया मन जग जाए
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नाम से अभिहित किया है । यदि हम इन्हें संक्षिप्त करें तो इनके पांच विभाग होते हैं ।
पहला विभाग है— सम्यग् दर्शन, सम्यग् दृष्टिकोण । जब आदमी का दृष्टिकोण सम्यक् बनता है तब समस्या के समाधान की भूमिका बनती है। जब दृष्टिकोण मिथ्या होता है तो शस्त्र का निर्माण और उन्माद अच्छा लगता है । रुमानियां का राजा अत्यन्त क्रूर और निर्दयी था । उसने एक लाख लोगों को मार डाला । वह एक साथ सैकड़ों लोगों को बंद करवाता, मरवाता। उनकी करुण चित्कार सुनकर वह प्रसन्न होता, नाचता, गाता । उसके लिए इससे बड़ा कोई मनोरंजन का साधन नहीं था । ऐसा क्यों होता है? जब दृष्टिकोण मिथ्या होता है तब नर-संहार अच्छा लगता है, अस्त्रों का प्रयोग अच्छा लगता है । उन्मार्ग अच्छा लगता है, सन्मार्ग अच्छा नहीं लगता । जब सम्यग् दर्शन आता है तब सारी दृष्टि बदल जाती है। चैतन्य की एक भूमिका का विकास हो जाता है । सम्मार्ग अच्छा लगने लगता है, उन्मार्ग अच्छा नहीं लगता ।
सम्यग् दर्शन की प्राप्ति चैतन्य - विकास का पहला सोपान है। इसकी तीन निष्पत्तियां हैं—– करुणा, शांति और स्वतंत्रता- बंधनमुक्ति की चेतना । जब व्यक्ति के मन में करुणा जाग जाती है तब उसकी क्रूरता धुल जाती है । तब वह दूसरे का अनिष्ट नहीं कर सकता। उसके सारे मानवीय संबंधों में परिष्कार आ जाता है। करुणा के साथ नैतिक विकास अपने आप होता है 1 अनैतिकता क्रूरता से जन्मती है । करुणा के जागने पर वह समाप्त हो जाती है । करुणा जागती है तो सामाजिक विषमता की समस्या को भी समाधान मिलता है । करुणा के जागने पर अणु अस्त्रों का भंडार खड़ा नहीं किया जा सकता। करुणा के जागने पर शांति अपने आप घटित होती है 1
पहला सोपान है सम्यग् दर्शन और उसकी तीन मुख्य निष्पत्तियां । इन निष्पत्तियों के होते ही मानवीय संबंधों में परिवर्तन घटित होने लगता है । इस कोण से देखें तो प्रेक्षा ध्यान का प्रयोग अपने आप में बहुत मूल्यवान् बन जाता है ।
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