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________________ चैतन्य - विकास के सोपान 169 संबंधों की समस्या का समाधान भौतिक स्तर पर नहीं हो सकता । उसका समाधान चैतन्य - विकास के द्वारा ही संभव है। यदि चेतना जागृत हो जाए तो मानवीय संबंधों में परिवर्तन आ सकता है । नैतिकता की समस्या का भी भौतिक स्तर पर समाधान नहीं हो सकता । भौतिक स्तर पर इसके समाधान का प्रयत्न किया गया, पर वह सफल नहीं हुआ । आर्थिक नियंत्रण किया गया। सामाजिक विषमता को समीकरण की दिशा में ले जाने का प्रयत्न हुआ, किन्तु इन भौतिकतादी प्रयत्नों को सफलता नहीं मिली । ये प्रयत्न अधूरे लग रहे हैं। जब तक चैतन्य का विकास नहीं होता तब तक इन समस्याओं को सुलझाने का राजमार्ग सामने नहीं आता । आदमी आदमी है। वह इतना अविश्वसनीय बना हुआ है कि वह संबंधों को भी बिगाड़ देता है, नैतिकता को भी ताक पर रख देता है और समता की बात पकड़ ही नहीं पाता । एक किसान बहुत अमीर था, पर था बड़ा आलसी । अमीरी के साथ आलस्य का गठबंधन है । एक दिन उसका मित्र आया, वातावरण देख कर बोला- मित्र ! तुम धोखे में जी रहे हो । कितने आलसी बने हुए हो ! ध्यान ही नहीं देते। यह लापरवाही तुम्हें दर-दर की ठोकरें खाने को बाध्य करेंगी। खाने को रोटी नहीं मिलेगी।' किसान बोला- 'इतनी कड़वी और कठोर बात कैसे कहते हो ? देखो, मेरे नौकर-चाकर कितने हैं? सारा परिवार मेरी आज्ञा में है। तुम ऐसा क्यों कह है हो ?' वह बोला —— तुम देख लेना मेरी बात सोलह आना सही होगी। पांच-दस दिन बाद मित्र पुनः आया और किसान से बोला — कुछ बीमार से नजर आ रहे हो! किसान बोला— हां, स्वास्थ्य नरम चल रहा है । कोई इलाज बताओ। वह बोला---- मित्र ! मुझे कोई ऐसा आशीर्वाद मिला है कि मैं स्वास्थ्य और अमीरी—इन दोनों का रहस्य जानता हूं । स्वस्थ रहने और अमीरी बनाए रखने का मंत्र मैं जानता हूं। किसान ने इसका रहस्य बताने का आग्रह किया । मित्र बोला—देखो, उसका मंत्र यह है कि प्रतिदिन जो राजहंस आता है, उसके दर्शन करो। जो प्रतिदिन उसका दर्शन करेगा वह कभी बीमार नहीं होगा । किसान उत्सुकता से भर गया । वह बोला — मित्र ! मुझे भी उसके दर्शन कराओ । वह कहां रहता है ? कहां मिलेगा ? आदमी में जब स्वास्थ्य और अमीरी-इन दो की भावना जागती है तब लंदन और मास्को भी दूर नहीं लगते । इनसे भी कहीं सुदूर प्रदेशों में वह जाने के लिए 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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