SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 168 सोया मन जग जाए संबंध और संबंध । व्यक्ति अकेला नहीं रहता। आगे से आगे वह संबंधों से जुड़ता. चला जाता है। वह शरीर में अकेला रहता है, पर संबंधों के कारण फैलता जाता है, अनेक हो जाता है। उसका बहुत विस्तार हो जाता है। मानवीय संबंध स्वयं में एक समस्या है और यह समस्या की जनक भी है। दूसरी समस्या है नैतिकता की समस्या। आदमी का पारस्परिक व्यवहार ऋजुतापूर्ण होता है या मायापूर्ण। वह व्यक्ति अच्छा व्यवहार करता है या बुरा। यह व्यवहार की समस्या नैतिकता की समस्या है। तीसरी समस्या है सामाजिक विषमता की। समाज में सब लोग समान स्तर पर नहीं जी रहे हैं। कोई ऊंचा है, कोई नीचा है। कोई धनाढ्य है, कोई गरीब। बहुत विषमता है। अनेक विषमताएं हैं। ___ चौथी समस्या है—अणु-अस्त्रों की। शस्त्रास्त्र स्वयं समस्या बन रहे हैं। आदमी ने शस्त्र का चुनाव किया था समाधान के लिए, पर वह समाधान स्वयं उसके लिए बड़ी समस्या बन गया। जिसने लाठी या पत्थर को शस्त्र बनाया, उसने अपने बचाव का उपाय किया था। पर उसने यह नहीं सोचा कि जैसे तुम पत्थर या लाठी चलाकर अपना बचाव कर सकते हो या दूसरे को चोट पहुंचा सकते हो तो क्या दूसरा अपने बचाव के लिए लाठी नहीं चला सकता? पत्थर नहीं फेंक सकता? एक लाठी चला सकता है तो दूसरा तलवार चला सकता है। शस्त्र का उत्तरोत्तर विकास होता है। अणु-अस्त्र को अंतिम नहीं माना जा सकता। उसके आगे भी अस्त्र बने हैं। उनके आगे भी अस्त्र बनेंगे। यह आगे से आगे चलता चलेगा। शस्त्र कोई अंतिम नहीं होगा। एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा शस्त्र विकसित होता चला जाता है। आज अणु-शस्त्र एक भयंकर समस्या बन गया है। इसकी विभीषिका इतनी बढ़ गई है कि प्रत्येक व्यक्ति इस भाषा में सोचता है कि अणु-शस्त्रों का प्रयोग न हो तो अच्छा है। जिस दिन इनका प्रयोग होगा, संसार में प्रलय हो जाएगा। प्राणी जगत् समाप्त हो जाएगा। पांचवीं समस्या है अशांति और तनाव की। विश्वशांति एक समस्या बनी हुई है। तनाव भी आज के युग की बड़ी समस्या है। आदमी केवल शारीरिक तनाव से ही ग्रस्त नहीं है, वह मानसिक और भावनात्मक तनाव से भी पीड़ित है। यह बहुत भीषण समस्या है। हर व्यक्ति में तनाव का उपादान विद्यमान है। क्रोध, अहंकार, भय, लोभ, घृणा ये तनाव के उपादान हैं। आदमी में ये सारे पूरी मात्रा में विद्यमान हैं। थोड़ा-सा उद्दीपन चाहिए, ये उभर जाते हैं। युग की ये पांच मानवीय समस्याएं हैं। इनका समाधान खोजना है। मानवीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy