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________________ 156 सोया मन जग जाए है, वह व्यक्ति जो कहता है वह बात सत्य है, अनुभूत है । किन्तु जिसने सचाई का स्वयं साक्षात्कार नहीं किया और केवल शब्दों को पकड़ रहा है, वह उसकी सही व्याख्या नहीं कर सकता। वह तर्क से सिद्ध कर सकता है, भुलावे में डाल सकता है, पर पदार्थ की अभिव्यक्ति नहीं कर पाता । तर्क उन लोगों ने चलाया जिनके पास अपना अनुभव नहीं था, सत्य का साक्षात्कार नहीं था । तर्क की प्रकृति ही ऐसी लचीली है कि उसे जहां चाहो वहां बिठा दो, बैठ जाएगा । तर्क जगत् की एक समस्या है कि वहां अनुभव का स्पर्श नहीं है। अनुभव - जगत् की यह समस्या है कि वहां तर्क और शब्द का स्पर्श नहीं है। तर्क का जगत् बड़ा विचित्र है । राजा के पास एक आदमी आकर बोला- मैं नौकरी चाहता हूं। राजा ने कहा- 'क्या खजाने का काम संभाल लोगे?' उसने कहा— नहीं। क्या सेना में भर्ती होना चाहते हो? 'नहीं।' 'क्या आरक्षी बनोगे ?' 'नहीं।' 'तो फिर क्या करना चाहोगे ?' वह बोला- 'राजन्!' ये सारे काम मैं नहीं जानता। मेरी अपनी यह विशेषता है कि मैं किसी भी प्रश्न का उत्तर तत्काल दे सकता हूं। मेरा उत्तर सटीक होता है । राजा ने परीक्षा करने के तात्पर्य से पूछा—' बताओ! मेरी हथेली में बाल क्यों नहीं हैं ?' उसने कहा— राजन् ! दान देते-देते आपकी हथेली के बाल उड़ गए । ' राजा ने पूछा- तुम तो दान नहीं देते, फिर तुम्हारी हथेली में बाल क्यों नहीं हैं ?' उसने कहा— 'महाराज ! दान लेते-लेते मेरे सारे बाल साफ हो गए।' राजा ने आगे पूछा—- अच्छा, तो बाताओ कि मेरे सभासदों की हथेलियों में बाल क्यों नहीं हैं ? वह तत्काल बोला— 'महाराज ! आप दान देते हैं, हम लेते हैं, तब इन्हें परम आनन्द की अनुभूति होती है । उस हर्ष के प्रकर्ष में ये जोर-जोर से तालियां बजाते हैं, इसलिए हथेलियों के बाल सारे झड़ गए । ' तर्क ठीक था । उसने तीनों बातों का सटीक उत्तर दिया । तर्क संगत भी था, पर इससे निकला क्या? निष्कर्ष कुछ भी नहीं । एक व्यक्ति आधुनिक भगवान् के प्रवचन में गया । एक घंटा तन्मयता से प्रवचन सुना। सारा प्रवचन तर्कपूर्ण, बौद्धिक और शब्दों के लालित्य से भरा पूरा। उसने आकर बताया — महाराज! घंटा भर वक्तव्य सुना। सुनने में बहुत अच्छा। तर्क संगत। उठा, दरवाजे के बाहर आकर सोचा, प्रवचन से क्या मिला ? मेरे मस्तिष्क ने उत्तर दिया- कोरे शब्द और कोरा भटकाव । जिस सिद्धान्त के साथ अनुभव नहीं जुड़ता, वह किसी का बहुत भला नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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