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________________ 154 सोया मन जग जाए बहुत ढूंढा मिला नहीं। उसी चिन्ता में आज भोजन भी नहीं किया। नींद भी उड़ गई।' मैंने कहा करोड़पति आदमी हो। सौ रुपयों का क्या अर्थ है ? गुम हो गए तो कौन-सा अनर्थ हो गया? उसने कहा, महाराज! मैं एक पैसे का घाटा भी सहन नहीं कर सकता। आय कितनी भी हो, उसे सह लेता हूं, पर व्यय सहा नहीं जाता। मनोबल टूट गया है। धन के होने पर भी यदि स्वास्थ्य नहीं है तो वह धनी दरिद्र होगा। दरिद्रता का जीवन जीना पड़ेगा। न खा-पी सकेगा और न खिला-पिला सकेगा। निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि सुखद जीवन का एकमात्र विकल्प धन नहीं है। स्वास्थ्य, मनोबल, शरीरबल, मानसिक संतुलन, बुद्धि-बल, विवेक आदि-आदि होने पर ही जीवन सुखी हो सकता है। यदि ये नहीं होते और कोरा धन होता है तो अनेक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। जब यह तथ्य हृदयंगम हो जाता है तब आदमी जीवन की सफल यात्रा के लिए धन को पचीस प्रतिशत और पिचहोत्तर प्रतिशत अन्यान्य तत्त्वों को मानेगा। इस सम्यग् दर्शन के प्रकाश से जब व्यक्ति का मन आलोकित होता है, जब यह समग्रता की दृष्टि प्राप्त होती है तब आसक्ति के बचने का कोई उपाय शेष नहीं रहता। जब व्यक्ति के मन में यह मनोरथ जागता है—कब मैं इस परिग्रह—आसक्ति के बन्धन से मुक्त हो सुखी जीवन जीऊं, उसी क्षीण से आसक्ति का चक्र टूटने लगेगा। सम्यग् दर्शन की जागृति का क्षण आसक्ति के टूटने का क्षण है। इसे हम सब समझें, हृदयंगम करें और इसे बनाए रखने का संकल्प लें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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