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क्या धन की आसक्ति छूट सकती है ?
153 धन की आसक्ति को मिटाने वाला विशेष बिन्दु अभी भी अज्ञात है। जब तक उसकी खोज चले तब तक हम दूसरे किसी एक उपाय को काम में लें। वह उपाय है—सम्यग्दर्शन, सम्यक् दृष्टिकोण। इसके आते ही मूर्छा टूटेगी और यह स्पष्ट प्रतीत होने लगेगा कि धन ही सब कुछ नहीं है। धन को सब कुछ मान लेना, मिथ्या दृष्टिकोण है। जब सम्यग्दर्शन जागता है, उसी क्षण से आसक्ति पर प्रहार होने लगता है और धीरे-धीरे वह क्षीण होती जाती है।
धन के प्रति आसक्ति होने का एक व्यावहारिक कारण यह है कि आदमी जब अन्यान्य व्यक्तियों को धन के प्रति आसक्त देखता है, गुलछर्रे उड़ाते हुए देखता है तब उसके मन में यह ललक जागती है कि जब सब धन एकत्रित कर रहे हैं तो भला मैं क्यों बाकी रहूं। यह ललक लालसा पैदा करती है और उसमें आसक्ति बढ़ जाती है। यह बहुमत के प्रभाव से होने वाली आसक्ति है। आदमी बहुमत के प्रभाव में बह जाता है। वह नहीं सोचता, सच क्या है झूठ क्या है। सरपंच के सामने एक व्यक्ति ने शिकायत करते हुए कहा-गांव वाले मुझे जलाने के लिए मरघट पर ले जा रहे हैं। वे कहते हैं, मैं मर गया। पर सरपंच साहब! देखें, मैं आपके सामने जिन्दा बैठा हूं। आप न्याय करें। सरपंच ने कहा मैं जानता हूं कि तूं मरा नहीं है। सामने बैठा है। बोल रहा है, पर बहुमत के निर्णय को मैं नकार नहीं सकता। जब सारा गांव कह रहा है कि तूं मर गया, फिर मेरे अकेले के कहने से क्या होगा? बहुमत का निर्णय मानना ही होगा।
प्रश्न यह नहीं है कि आदमी जिन्दा है या मरा। प्रश्न है बहुमत की क्या राय है। आज का बहुमत धन के पक्ष में है। आसक्ति को बढ़ाने की दिशा में प्रस्थित है। फिर उस आसक्ति को तोड़ने की बात में वजन की क्या रह जाएगा? इस स्थिति में एक मात्र उपाय बचता है सम्यग् दर्शन का। व्यक्ति-व्यक्ति में इस धारणा का निर्माण हो कि धन ही सब कुछ नहीं है। इस धारणा के पुष्ट होते ही आसक्ति में छेद होने लगेगा और देखते-देखते वह छेद दरार बनकर आसक्ति के सरोवर को रिक्त कर देगा।
'धन ही सब कुछ नहीं है', क्योंकि जीवन के महत्त्वपूर्ण घटक तत्त्व दो हैं बुद्धि और स्वास्थ्य। जिनके पास धन का अंबार लगा हुआ है पर बुद्धि
और स्वस्थता नहीं है तो वह धन उनके लिए शत्रु बन जाएगा। वे उस धन का उपभोग नहीं कर पाएंगे। मनोबल टूट जाएगा। वे केवल धन के नौकर मात्र रहेंगे, स्वामी कभी नहीं बन पाएंगे।
एक करोड़पति सेठ मेरे पास बैठा था। उदास था। मैंने उदासी का कारण पूछा। उसने कहा, महाराज! 'मेरे पास सौ का नोट था। वह कहीं गिर गया।
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