________________
150
सोया मन जग जाए खोजना चाहिए। ध्यान उपाय है। पर कैसा ध्यान, इसका विवेक अपेक्षित है। सबके लिए या सभी उपायों के लिए एक ही प्रकार का ध्यान कारगर नहीं हो सकता। क्रोध को मिटाया जा सकता है, पर हर प्रकार के ध्यान से वह नहीं मिटता। वह जानना जरूरी होता है कि शरीर के किस बिन्दु पर कैसा ध्यान करने से वह मिटता है। यह स्पेशेलाइजेशन की प्रक्रिया है। व्यवहार में भी हम देखते हैं कि एक डाक्टर पूरे शरीर की चिकित्सा करता है, फिर भी शरीर के विभिन्न अवयवों की सूक्ष्म चिकित्सा या विशेष चिकित्सा के लिए विशेषज्ञ होते हैं। आंख, नाक, कान, हृदय, हड्डी का संधान आदि-आदि के विशेषज्ञ होते हैं। उनका इन अवयवों की चिकित्सा पर अधिकार होता है। ध्यान का प्रयोग भी ठीक ऐसा ही है। हमारा पूरा शरीर ध्यान का केन्द्र है और उसके किसी भी भाग पर ध्यान किया जा सकता है। किन्तु बदलना है क्रोध की प्रकृति को और ध्यान किया जाए घुटनों पर या अंगुलियों पर तो सफलता नहीं मिलेगी। बदलना है काम-वासना की प्रकृति को और ध्यान किया जाए कंधे पर या पीठ पर, तो काम नहीं बनेगा। निराशा ही हाथ लगेगी। हमें उस बिन्दु का ज्ञान होना चाहिए, जहां ध्यान करने पर क्रोध की और काम वासना की प्रकृति रूपान्तरित होती है। इन सब उपायों के लिए विशेष बिन्दु हैं शरीर में, जिन पर एकाग्र होने से ये सारे उपाय मिट जाते हैं। यदि क्रोध को बदलना है तो ललाट पर ध्यान करना होगा। यहां कषाय की अभिव्यक्ति होती है। कषाय का यह मुख क्षेत्र है। यह एमोशनल एरिया है। इसी प्रकार विशुद्धि-केन्द्र और आनन्द-केन्द्र पर ध्यान करने से कामवासना पर नियन्त्रण किया जा सकता है। सबके भिन्न-भिन्न बिन्दु हैं और ध्यान के भिन्न-भिन्न प्रयोग हैं।
धन के प्रति आसक्ति को कम करने के लिए पहले हमें आसक्ति के बिन्दु को जानना होगा। वह शरीर में कहां-कैसे है, इसका ज्ञान करना होगा। प्रेक्षाध्यान का प्रयोग केवल शारीरिक परिवर्तन मात्र घटित करने के लिए नहीं है। जैसे, ६ यान किया और जो रकतचाप अधिक था वह कम हो गया। ध्यान किया, रक्तचाप संतुलित हो गया। ध्यान किया और बीमारी मिट गई। ये सारी प्रासंगिक बातें हैं, प्रासंगिक परिणाम हैं। प्रेक्षाध्यान का मुख्य प्रयोजन है—भाव परिवर्तन, वृत्तियों का रूपान्तरण। क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या, घृणा, भय, कामवासना आदि-आदि जो मोहनीय कर्म की प्रकृतियां हैं, उनसे निपटना, संस्कारों को क्षीण करना— यह है ध्यान का मुख्य प्रयोजन। ये सारी प्रकृतियां सताए नहीं, बढ़े नहीं, आसक्ति का रूप न ले ले, यह अपेक्षित है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org