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२१. क्या धन की आसक्ति छूट सकती है?
आज मैं एक प्रश्न उपस्थित कर रहा हूं । ध्यान की शक्ति - सीमा क्या है ? प्रत्येक तत्त्व की शक्ति - सीमा होती है । अनेक लोग कहते हैं, ध्यान से सब कुछ हो जाएगा। मैं इसमें विश्वास नहीं करता । अनेक लोग कहते हैं, धर्म से सब कुछ हो जाएगा। मैं इसमें विश्वास नहीं करता । 'सब कुछ हो जाए' या 'सब कुछ कर दे' – ऐसा एक भी तत्त्व नहीं है संसार में। सबकी अपनी-अपनी सीमा है, मर्यादा है। ध्यान की भी एक सीमा है। उससे कुछ होता है, पर सब कुछ नहीं होता । अनेक लोगों ने यह प्रश्न प्रस्तुत किया है कि ध्यान के द्वारा आर्थिक समस्या सुलझ सकती है? क्या धन के प्रति जो असीम आसक्ति है, उसे ध्यान के द्वारा तोड़ा जा सकता है ? तो आज हम ध्यान और धन के संबन्ध की चर्चा करें।
धन एक आवश्यक तत्त्व है । इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। जीवन की यात्रा चलाने के लिए आवश्यक तत्त्वों में धन की प्राथमिकता है । रोटी से जीवन चलता है, पर धन के बिना रोटी नहीं आती । पानी से जीवन चलता है, पर पैसे के बिना पानी नहीं मिलता। जीवन की जो प्राथमिक और अनिवार्य आवश्यकताएं हैं, उनकी पूर्ति का साधन है धन । श्वास इसका अपवाद है, क्योंकि वह खरीदना नहीं पड़ता, कहीं से लाना नहीं पड़ता । वह सबके पास है । पर कभी-कभी श्वास भी धन से प्राप्त किया जाता है । जब सहज श्वास लेने में कठिनाई होती है तब आक्सीजन लिया जाता है। उसके लिए धन आवश्यक होता है ।
निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि जीवन की यात्रा को चलाने का सबसे पहला और सबसे अंतिम सशक्त साधन है धन । इसलिए धन की आवश्यकता को स्वीकारने में किसी को कोई हिचकिचाहट नहीं होती ।
दूसरी बात है, जो जितना आवश्यक होता है, वह उतना ही प्रिय बन जाता है । आवश्यकता और प्रियता में दूरी बहुत कम है। जिसकी आवश्यकता होती है, उसमें प्रियता का समावेश हो जाता है । इस दृष्टि से धन आवश्यक साधन ही नहीं रहा, उसके साथ प्रियता भी जुड़ गई। धन की पहली अवस्था है आवश्यकता और दूसरी अवस्था हो गई प्रियता । मकान बनाया आवश्यकतावश पर अब उसके साथ प्रियता जुड़ गई। इतनी प्रियता जुड़ गई कि कभी-कभी दूसरों के मकान में
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