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सोया मन जग जाए
पता चला तो उन्हें केवल पछतावा ही हाथ लगा।
सिकन्दर महान् इसका ज्वलंत उदाहरण है। वह प्रत्येक अभियान में सफल होता गया। विजय और केवल विजय। साम्राज्य का इतना विस्तार कर लेने पर भी वह अन्त तक अनासक्त नहीं बन सका। ___ महाराज अपराजित महान् विजय प्राप्तकर माता के चरण-स्पर्श करने गया। मां ने मुंह फेर लिया। उसने कहा, मां! महान् विजेता बनकर आया हूं। आशीर्वाद दो। मां ने कहा-नर-संहार कर विजय प्राप्त करने वाले को क्या आशीष दूं? बोलो, इतनी विजय प्राप्त कर क्या करोगे? उसने कहा मां! पड़ोसी राज्यों को जीतूंगा। फिर क्या करोगे? आस-पास तथा दूर के राज्यों को अपने राज्य में मिलाऊंगा। फिर क्या करोगे? 'सभी राजाओं को अधीनस्थ बनाकर फिर शांति से बैलूंगा।' मां बोली-कितने भोले हो! लाखों लोगों का संहार कर शांति से बैठोगे तो आज ही शांति से क्यों नहीं बैठ जाते? __ हर आदमी को कहना पड़ेगा, इतना सब कुछ कर लेने पर, अन्त में मैं शांति से बैलूंगा, निवृत्त हो जाऊंगा। प्रत्येक युद्ध का परिणाम होता है संधि, समझौता। यह आखिरी मंजिल है। तो पहले ही हम इसको दृष्टि में रखकर प्रवृत्त क्यों नहीं करते?
आदमी प्रवृत्ति-निपुण है। उसे प्रवृत्ति की शिक्षा अपेक्षित नहीं है। वह निवृत्ति सीखे, निषेध सीखे। आज के मनोविज्ञान ने 'नकार' पर प्रश्न-चिह्न लगा दिया है कि नकार की भाषा में नहीं बोलना, सोचना चाहिए। पर यह एकांगी दृष्टिकोण
निषेध बहुत आवश्यक है। आदमी सब कुछ खाना जानता है पर उसे सीखना है कि भोजन में अमुक चीजें कैसे छोड़ी जा सकती हैं। वह सोचने में निपुण है. पर उसे 'न सोचने' की विधि सीखनी है। वह बोलने में विचक्षण है, पर उसे 'मौन' रहने की कला सीखनी है। यह सारा है निवृत्ति का अभ्यास । यदि कोई पूछे कि श्रेष्ठ जीवन की परिभाषा क्या है तो मैं कहूंगा कि जिस जीवन में प्रवृत्ति का संतुलन है वह है श्रेष्ठ जीवन, उत्कृष्ट जीवन। जिसमें यह संतुलन नहीं है वह है जघन्य जीवन । कोरी निवृत्ति चल नहीं सकती। कोरी प्रवृत्ति चलती है तो जीवन टूट जाता है। मानसिक और शारीरिक विकृतियां पैदा हो जाती हैं। वह जीवन नारकीय जीवन बन जाता है।
निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि हम आवश्यकता और अनासक्ति की सीमा में जीएं। बीच में जो आसक्ति है, उसे समझें। एक ओर आवश्यकता है, दूसरी ओर अनासक्ति। दोनों के बीच निवृत्ति का धागा जुड़ जाए, आसक्ति कम हो जाएगी। तब आवश्यकता अनासक्ति को जन्म देगी और अनासक्ति
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