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सोया मन जग जाए
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जो आदमी सब कुछ स्वीकारता जाता है, कुछ भी नहीं नकारता, केवल वाचालता करता है, वह झूठ बोलता है, धोखा देता है। आदमी को नकारना भी चाहिए कि यह मेरी शक्ति से बाहर है। मैं यह कर नहीं सकता । ऐसा व्यक्ति धोखा नहीं दे सकता ।
सोचना और सोचने का निषेध 'न सोचना', बोलना और बोलने का निषेध 'न बोलना' तथा करना और करने का निषेध 'न करना' – दो मार्ग हैं। एक है प्रवृत्ति और दूसरी है निवृत्ति । प्रवृत्ति के साथ यदि निवृत्ति नहीं होती है तो वह प्रवृत्ति सम्यक् नहीं हो सकती । अनेक व्यक्ति निवृत्ति को पलायनवाद कहते हैं। पश्चिमी दार्शनिकों ने भारतीय दर्शन को पलायनवादी दर्शन की संज्ञा दी है । भारतीय दार्शनिकों ने भी यहां के जैन और सांख्य दर्शन को पलायनवादी दर्शन माना है। यह पलायनवाद नहीं, मूल सचाई है । जिस साधना या प्रवृत्ति की पृष्ठभूमी में निवृत्ति नहीं होती, वह प्रवृत्ति आदमी को खतरनाक मोड़ पर पहुंचा देती है। वह आदमी में आसक्ति पैदा कर देती है और यही कारण है कि नितांत प्रवृत्ति, कोरी प्रवृत्ति ने अणुयुग को पैदा किया, अणुअस्त्रों को जन्म दिया। यदि निवृत्ति का भाव होता तो अणु अस्त्रों को जन्म नहीं मिलता। कोरी प्रवृत्ति की ही यह उपज है। जब इस उपज के भयावह परिणाम आने लगे तब निवृत्ति या निःशस्त्रीकरण या अणु-अस्त्रों का सीमाकरण —– यह बात उपजी । तब ये स्वर उभरे कि स्टार वार को रोका जाए। अणुअस्त्रों का विस्तार न किया जाए। यह निवृत्ति की बात सामने आती है । आखिर निवृत्ति पर आकर ही आदमी सुख की सांस ले पाता है । यदि प्रवृत्ति ही सब कुछ है तो फिर आगे बढ़ते चलें, रुके नहीं। फिर चाहे अणुयुग का विस्तार हो या अन्तरिक्ष युद्ध का निर्माण हो या और कुछ हो जहां रुकने की भावना आएगी, वह निवृत्ति होगी ।
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हम किसी भी क्षेत्र में निवृत्ति को नकार नहीं सकते । साधना में निवृत्ति जरूरी है तो व्यवहार में भी उसकी अनिवार्यता है 1
श्वास लेना प्रवृत्ति है, आवश्यकता है। इसके बिना कोई रह नहीं सकता । किन्तु अ-श्वास रहना भी आवश्यक है। जिसने अ - श्वास रहने का अभ्यास कर लिया उसने विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया । अ - श्वास अचिन्तन की भूमिका है, मौन और प्रक्रिया की भूमिका है। यदि हम प्रत्येक श्वास के साथ दो सेकेंड के अ- श्वास का अभ्यास करें तो सहज ही अ श्वास की स्थिति बन जाती है । पूरे दिन में हम लगभग २०-२५ मिनिट अ-श्वास के बिता सकते हैं। इससे जीवनीशक्ति, कर्मजाशक्ति और मस्तिष्कीय शक्ति बढ़ेगी । श्वास का संयम, कुंभक या अ-श्वास विकास के स्रोत हैं। श्वास का संयम करना चिन्तन को प्रखर और
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