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आसक्ति अनासक्ति का आधार निवृत्तिवाद
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आदमी जब चाहे तब अपने चिंतन पर नियंत्रण कर सकता है, जब कि पागल नियंत्रण नहीं कर सकता। जो विचार आ गया पागल उसी में बह जाता है इसीलिए वह पागल कहलाता है । पागल आदमी कम नहीं सोचता । वह समझदार से भी अधिक सोचता है, पर नियंत्रण की क्षमता न होने के कारण वह पागल कहलाता है ।
अधिक सोचना, निरंतन सोचना, आदमी को पागल बना देता है, दिमाग पगला जाता है । निरन्तर बोलना भी आदमी को खोखला बना देता है, पागल-सा बना देता है । जो सोचता है और चिंतन को विश्राम भी देता है, जो बोलता है और वाणी को विश्राम भी देता है, उसका चिंतन और बोलना और अधिक तेजस्वी बन जाता है। जो केवल बोलता ही है, चुप नहीं रहता, वह झूठ अधिक बोलेगा 1 जो सीमित बोलता है वह झूठ से बच सकता है।
पशुओं का मेला लगा हुआ था । अनेक बेचने वाले और अनेक खरीदने वाले । एक व्यक्ति ने एक सौदागर से अनेक पशु खरीदे। उस सौदागार के पास एक कुत्ता भी था। उसने कहा - ' आप ने अन्यान्य सारे पशु खरीद लिए, इस कुत्ते को क्यों छोड़ा ? आप इसे ले जाएं, यह बड़ा अद्भुत कुत्ता है । यह मनुष्य की भाषा बोलता है।' यह सुनकर खरीददार को आश्चर्य हुआ । उसने कुत्ते से पूछा—
'तुम कहां से आए हो?'
'मैं उज्जयिनी से आया हूं ।'
'यहां क्यों आए हो?'
' मालिक ले आया, इसलिए । '
'तुम क्या करोगे '
'जो मालिक कहेगा ।'
'रात में रखवाली करोगे?"
'हां ।'
'दिन में जहां भेजूंगा, वहां चले जाओगे ?'
'अवश्य ही ।'
उसने जो भी कहा, कुत्ता स्वीकार करता गया, नकारना वह जानता ही नहीं थी। उसने फिर पशु के सौदागर से कहा—- इतना अच्छा नौकर है, फिर इसे बेच क्यों रहे हो? वह बोला—- — यह कहता सब कुछ है, पर करता कुछ भी नहीं । झूठ बोलने में यह माहिर है । '
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