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सोया मन जग जाए
जैन दर्शन के दो प्रसिद्ध शब्द हैं—– समिति और गुप्ति। समिति प्रवृत्ति है और गुप्ति निवृत्ति। समिति जब गुप्ति से संवलित होती है तब प्रवृत्ति सत् होती है, अनासक्तिपूर्ण होती है। जिस प्रवृत्ति की पृष्ठभूमि में गुप्ति नहीं होती, वह असम्यक् होती है, असत् होती है। निवृत्ति कार्य को शुद्धता देती है । जितना - जितना निवृत्ति या निषेध का अंश है वह कार्य को उतना ही सद् बनाता है ।
एक आदमी खड़ा है, ठहरा हुआ है । ठहरना निवृत्ति है, चलना प्रवृत्ति है । ठहरने के पीछे एक संकल्प है कि मैं ठहरा हुआ हूं। वह संकल्प उसे गति - निवृत्ति यानि ठहराए हुए है । ठहरने के बाद जो उसमें में गति निकलेगी वह शक्तिशाली होगी । एक आदमी चलता जाए, निरन्तर चलता चले तो उसकी गति में मंदता आ जाएगी। शरीर के पुर्जे घिस जाएंगे। यदि वह गति की निवृत्ति करता हुआ प्रवृत्ति नहीं करेगा तो लुढ़क जाएगा, चल नहीं पाएगा । स्थिति है गतिमूलक । यदि गति नहीं है तो स्थिति नहीं है ।
एक राजा ने एक व्यक्ति से कहा — दिन भर में तुम जितनी भूमि को चलकर पार करोगे, उतनी भूमि तुम्हें दे दी जाएगी । वह व्यक्ति प्रसन्न होकर चला । निरन्तर गति करता रहा । रुका नहीं । विश्राम नहीं लिया । गति की निवृत्ति नहीं की । सांझ हुआ । चलकर राजा के पास आ ही रहा था कि गिर पड़ा और मर गया ।
सतत प्रवृत्ति जीवन का अस्त-व्यस्त कर डालती है । निवृत्ति जरूरी है । मैं यदि पूछूं कि जीवन किससे चलता है तो सभी एक ही उत्तर देगें —— जीवन चलता है आहार से, भोजन - पानी से । सीधा उत्तर है। सही भी है । पर यह पूरा सही नहीं है । जीवन केवल आहार से नहीं चलता। वह चलता है आहार और अनाहार के संतुलन से । यदि केवल आहार से जीवन चलता हो तो चौबीस घंटा खाकर देखें । निरंतर खाते रहें। दूसरे दिन निकम्मे हो जाएंगे। उठना-बैठना भारी हो जाएगा। संभव है काम तमाम हो जाए । अनाहार तो चौबीस घंटे क्या, पचास-साठ या अधिक दिन भी रहा जा सकता है । पर निरन्तर आहार का क्रम चलाना, इतने लंबे समय तक संभव नहीं है । असंभव है । जीवन चलता है आहार और अनाहार के उचित योग से । यथार्थ में आहार से अनाहार का महत्त्व अधिक है ।
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हम सोचते हैं, इसलिए काम कर पाते हैं । अधूरा सत्य है । हम नहीं सोचते, इसलिए सोचे हुए काम को सरलता से संपन्न कर डालते हैं । आप निरन्तर २४ घंटे सोचते रहें । चिन्तन करते रहें, पागल हो जाएंगे या ब्रेन हेमरेज के शिकार बन जाएंगे। समझदार और पागल में यही तो अन्तर होता है कि समझदार
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