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सोया मन जग जाए
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व्यक्तियों को प्रतिबोध देने के लिए, उनकी आंख खोलने के लिए, ये बातें कही गई
हैं
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अभय होना बहुत बड़ी साधना है तो भय का होना भी आवश्यक है। समाज भयमुक्त होकर चल नहीं सकता । साधक में यदि भय न हो तो वह भी ठीक चल नहीं सकता । भय दोनों प्रकार का आवश्यक है बाहर का भय और भीतर का भय । वर्तमान स्थिति का भय और परिणाम का भय । ऐसा काम करोगे तो नाम पर धब्बा लग जाएगा' – यह भय है । शुद्ध अध्यात्म की स्थिति में यह बात कभी मान्य नहीं होती । पर यह भय आदमी को बचाता है । प्रतिष्ठा के कम होने का भय, गुरु के उलाहने का भय, साथी के उपालंभ का भय, परिवार के सम्मान का भय- ये सारे भय रागात्मक चरित्र वाले व्यक्ति को बचाते हैं ।
पांचवां उपाय है— नियंत्रण | नियंत्रण के बिना रागात्मक भाव सहसा बदल नहीं पाता। आवास, भोजन, साथी -- इन सबका नियन्त्रण आवश्यक होता है । रागात्मक चरित्र वाले व्यक्ति का भोजन एक प्रकार का होगा और द्वेषात्मक चरित्र वाले व्यक्ति का भोजन दूसरे प्रकार का होगा। दोनों की भोजन विधाएं भिन्न होंगी । रागभाव वाला व्यक्ति मनोज्ञ भोजन पसन्द करेगा। उससे राग में वृद्धि होगी। द्वेष प्रकृति वाला अमनोज्ञ भोजन करेगा, चिड़चिड़ापन बढ़ता जाएगा। स्निग्धता स्निग्धता को और रूक्षता रूक्षता को बढ़ाती है । रागात्मक चरित्र वाले को कभी-कभी अमनोज्ञ भोजन और द्वेषात्मक चरित्र वाले को कभी-कभी मनोज्ञ भोजन देने से संतुलन बना रहता है । यह नियन्त्रण आवश्यक है ।
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सबके साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता । विधि - निषेध को जानने वाला संतुलन स्थापित करता है ।
वैद्य के पास दो रोगी आए । वैद्य ने एक रोगी को कहा- तुम प्रतिदिन कुछ घी का सेवन करो और दूसरे को कहा – तुम जीवन भर के लिए घी का प्रयोग छोड़ दो। सुनने वाले को यह पक्षपातपूर्ण व्यवहार लग सकता है। पर वैद्य अनुभवी था। जिसके पाचन की मंदता थी उसकी पाचन - अग्नि को उद्दीप्त करने के लिए घी का साधारण प्रयोग उचित था। जिसके चर्बी बहुत बढ़ी हुई थी, उसके लिए घी का सर्वथा वर्जन उचित था । यह पक्षपात नहीं, विवेकपूर्ण व्यवहार है ।
दूसरा नियंत्रण है— आवास का । रागात्मक प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए नीले रंग का आवास उपयोगी होता है । उसकी प्रकृति का परिवर्तन होने लगता है। नीला रंग
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