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________________ 136 सोया मन जग जाए नहीं जा सकता। धन जीवन निर्वाह का एक साधन है, आवश्यकता है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता। ___ एक शिष्य ने गुरु से पूछा-आवश्यकता और आसक्ति में अन्तर क्या है? गुरु ने एक पिंजरा और एक फल मंगवाया। पिंजरा खाली था, खुला था। एक पक्षी आया। फल खाकर पिंजरे को देखकर चला गया। दूसरे दिन एक फल बाहर रखा और दूसरा फल भीतर। पिंजरा बंद था। ठीक समय पर पक्षी आया। बाहर पड़ा फल खाया। उसकी दृष्टि पिंजरे में पड़े बड़े फल की ओर गई। वह पिंजरे के चक्कर लगाने लगा। बहुत समय तक चक्कर लगाता रहा। थक गया। फल मिला नहीं। उड़ गया। गुरु ने कहा—पक्षी के कल थी आवश्यकता और आज है आसक्ति। आवश्यकता पूरी हुई। पक्षी उड़कर चला गया। आज आसक्ति है। फल पिंजरे में बंद है। छटपटा रहा है उसे पाने के लिए। बंदरों को पकड़ने वाले एक संकरे मुंह वाले बर्तन में चने डालकर रख देते हैं। बंदर चनों का लालची होता है। वह उस संकरे बर्तन में हाथ डालता है, चनों से मुट्ठी भर कर हाथ बाहर निकालने का प्रत्यन करता है, पर बाहर निकाल नहीं पाता। क्योंकि मुट्ठी में चने हैं, वह बंद है। यह बंदर की आसक्ति है। ____ अध्यात्म के चिंतकों ने अव्यावहारिक बात नहीं कही। उन्होंने व्यवहार का लोप नहीं किया। उन्होंने पहले ही चरण में यह नहीं कहा कि वीतराग बन जाओ। ऐसा होना असंभव है। साधना का भी क्रम होता है। पहले चरण में उन्होंने कहा आवश्यकता और आसक्ति का भेद समझो कि यह मेरे जीवन की आवश्यकता है और वह मेरे जीवन की आसक्ति है। यह बोध स्पष्ट होने पर आगे की बात सुगम हो जाती है। जीवन में यदि कोरी आसक्ति रहती है तो वह बोझिल बन जाता है। फिर आवश्यकता का भी नामशेष हो जाता है। उसका पता ही नहीं चलता। केवल आसक्ति चलती रहती है। बहुत सारे लोग आसक्ति का जीवन जीते हैं और भार ढोते रहते हैं। मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, मानसिक अवसाद और पागलपन-ये सब आसक्ति की चिनगारियां हैं जो अनेक रूपों में अभिव्यक्त होती हैं। रागात्मक चरित्र को मिटाने का पहला उपाय है—आसक्ति और आवश्यकता का भेदज्ञान करना। दूसरा उपाय है अशौच भावना। यह अपने शरीर के प्रति या दूसरे के शरीर के प्रति होने वाली आसक्ति या रागभाव को मिटाने का उपाय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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