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इच्छा पूरी करनी होती है ।
बात फैलते-फैलते अन्त: पुर में पहुंची। पटरानी के मन में उत्सुकता जागी I उसने महाराज को कहकर वह शीशा अपने पास मंगा कर स्वयं का प्रतिबिंब देखा। वह पुलक उठी। साज-श्रृंगार कर पुनः देखा । मन आनन्द से भर गया । रानी की प्रसन्नता ने उसके सौन्दर्य में निखार ला दिया । राजा ने रानी से निखार का कारण पूछा। रानी ने सारी बात बता दी। राजा के मन में पुन: उत्सुकता जागी। उसने एकांत में जाकर अपनी छवि देखी । मन आनन्द से भर गया। राजा ने उस व्यक्ति को बुलाकर, छाती से लगा, पुरस्कृत किया ।
यह है स्वयं को देखने का चमत्कार । व्यक्ति निषेधात्मक भावों से विधेयात्मक भावों में आ जाता है। दंड पुरस्कार में बदल जाता है। राग विराग में बदल जाए, लोभ पर संतोष छा जाए - यह सब कुछ हो सकता है, जब हमें स्वयं को देखने का दर्पण प्राप्त हो जाता है । यह प्राप्त होने पर लोभ और संग्रह से होने वाले समस्या, विषमता की समस्या तथा अन्यान्य सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है। प्रश्न है वह दर्पण क्या है ?
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सोया मन जग जाए
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