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बहुत दूरी है आवश्यकता और आसक्ति में
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कठियारा जानता था कि अरणि की लकड़ी में आग विद्यमान है । पर वह उससे आग निकालने का उपाय नहीं जानता था । उसने अरणि की लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर डाले पर आग नहीं निकली। आग वही निकाल सकता है जो तरकीब जानता है ।
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राग को बदलने का उपाय है विराग विराग तब आता है जब व्यक्ति ध्यान के द्वारा अपने संस्कारों को साक्षात्कार कर लेता है। श्वास- प्रेक्षा, दीर्घ श्वास- प्रेक्षा आदि ध्यान नहीं हैं। ये ध्यान के परिवार हैं, घटक हैं इसलिए इन्हें भी ध्यान कह देते हैं । ध्यान तो बहुत दूर है। लंबी यात्रा के बाद वहां पहुंचा जा सकता है। ये सारी प्रारम्भिक भूमिकाएं हैं। ध्यान की अवस्था वह है जहां मन निरुद्ध अवस्था को प्राप्त हो जाता है या अमन बन जाता है ।
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मन अनिरुद्ध है । वह भटकता रहता है । उसे बछड़े की उपमा दी जाती है। बछड़ा बाड़े में बंधा रहता है तो ठीक रहता है । उसे यदि मुक्त आकाश दे दिया जाता है तो वह ऊधम मचाता फिरता है । मन यदि बाड़े में बंधा नहीं रहता तो उसकी चंचलता अपार हो जाती है। इसलिए मन का निरोध आवश्यक होता है । मन की एक भूमिका है — यातायात । प्रायः लोग इसी भूमिका में जीते हैं । मन दौड़ता रहता है । कभी एकाग्र होता है और कभी उच्छृंखल । उसके निरोध का अभ्यास करें। यह न देखें की एकाग्रता टूटी कितनी बार । यह देखें कि एकाग्रता सधी कितनी बार । चंचलता कितनी कम हुई । आदमी उलझ जाता है निषेधात्मक भावों में । एक मार्मिक कहानी है—
एक व्यक्ति ने शीशे का आविष्कार किया। उसने सोचा, आदमी अपने आपको देख नहीं सकता, पर मेरे आविष्कार से वह अपने आपको देख सकेगा। वह प्रसन्न होकर राजा के पास गया। राजा ने पूछा- क्या लाए हो ? उसने कहा— 'महाराज' ! अद्भुत वस्तु लाया हूं। वह वस्तु लाया हूं, जिसमें आदमी स्वयं को देख सके।' राजा का मन उत्सुकता से भर गया । वह स्वयं को देखना चाहता था। तभी मंत्री ने राजा को एकान्त में ले जाकर कहा - 'महाराज ! क्या आप राज्य का सत्यानाश करना चाहते हैं ? क्या आप नहीं जानते कि अपनी छाया या प्रतिबिम्ब को देखना कितना बड़ा अपशकुन है ? लगता है यह धोखेबाज है । किसी राज्य का गुप्तचर या आपका अकल्याण चाहने वाले हो ।' राजा ने सुना। माथा ठनका। विचार बदला और उस व्यक्ति को जेल में डाल, फांसी की सजा सुना दी। फांसी का दिन आया। राजा ने पूछा— बोलो, तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है ? उसने कहा महाराज ! मेरी अंतिम इच्छा यही है कि आप मेरे शीशे में एक बार स्वयं को देखें । यह सुनकर राजा अवाक् रह गया। अंतिम
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