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________________ 12 साया मन जग जाए प्रकाश को कभी पृथक् नहीं किया जा सकता। मन कभी अशांत होगा और कभी शांत। युवराज भद्रबाहु अपने मंत्रीपुत्र सुकेशी के साथ विहारचर्या कर रहे थे। एक स्थान पर भीड़ को देखकर युवराज ने पूछा यह स्थान कौन-सा है? यहां इतनी भीड़ क्यों है? सुकेशी बोला युवराज! यह श्मशानभूमी है। कोई आदमी मरा है, उसे जलाया जा रहा है। युवराज ने सुना। उसे अपने सौन्दर्य पर गर्व था। उसने कहा—'शरीर को क्यों जलाया जा रहा है? उसे सुरक्षित क्यों नहीं रख लिया जाता?' मंत्रीपुत्र बोला-राजकुमार! आप नहीं जानते। मरने के बाद शरीर सड़-गल जाता है। उससे दुर्गन्ध आने लगती है। कोई भी उसे अपने पास रखना नहीं चाहता।' राजकुमार ने अपनी ओर देखा। सुन्दरता का अहं प्रत्येक अवयव से टपक रहा था। वह बोला तो क्या मेरा यह सुन्दर शरीर भी एक दिन जला दिया जाएगा?' मंत्रीपुत्र ने कहा-'अवश्य ही जला दिया जाएगा।' युवराज ने यह सुना, मन अशांत हो गया। उसके सौन्दर्य का गर्व चूर-चूर हो गया। जलने की बात को सुनकर वह कांप उठा। अब वह अशांत और उदास रहने लगा। राजा ने देखा। उदासी का कारण जाना। उसे सिद्धपुरुष के पास ले गया। सारा घटनाक्रम सामने रखा। सिद्धपुरुष ने कहा—'राजकुमार! तुम मिथ्याज्ञान में चले गए, इसलिए अशांत बन गए। शरीर सुन्दर नहीं होता। सुन्दर होता है इसके भीतर रहने वाला चेतन तत्त्व। तुम उसे देखो। तुमने शरीर को सुन्दर मान लिया, इसीलिए अशांत हो गए।' राजकुमार की आंखें खुलीं और मन की अशांति दूर हो गई। मन स्वस्थ हो गया। मन की तीन अवस्थाएं हैं अशांत अवस्था, शांत अवस्था और समाधि की अवस्था। आदमी अधिक जीता है मन की अशांत अवस्था में। गरीब आदमी का ही मन अशांत नहीं रहता, अमीर आदमी का मन भी अशांत रहता है। गरीब आदमी अशांत इसलिए रहता है कि उसके पास जीवन के साधन सुलभ नहीं होते। अमीर इसलिए अशांत है कि साधन सुलभ होने पर भी मन में सन्तोष नहीं है। सर्वे करने पर यह स्पष्ट होगा कि गरीब से भी अमीर ज्यादा अशांत __ जब मन में कोई उद्वेग नहीं होता तब वह शांत रहता है। यह मन की शांत अवस्था है। यह ज्यादा टिकती नहीं। चंचलता आती रहती है और मन अशांत होता रहता है। तीसरी अवस्था है अमन की अवस्था, मन की समाप्ति की अवस्था। यह ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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