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सोया मन जग जाए वशीभूत होकर भोगा जाने वाला दु:ख। आदत बन गई कि अतीत की घटना को याद करते जाना और दुःख भोगते जाना। इसका अंत कैसे हो? __दु:ख का दूसरा हेतु है—असातवेदनीय कर्म का उदय । अतीत के कर्म वर्तमान में उदय में आकर जब फल देते हैं तब अप्रिय संवेदन जागते हैं और आदमी दु:खी बन जाता है। अपना किया हुआ स्वयं को ही भोगना पड़ता है। यह है कर्मजन्य संवेदन।
दु:ख है। दुःख का हेतु है। सुख है। सुख का हेतु है। इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। दुःख का हेतु है—प्रतिकूल सामग्री और सुख का हेतु है अनुकूल सामग्री।
सुख की तीन अवस्थाएं हैं—सुख की सामग्री, सुख का संवेदन और सुख-चेतना की आन्तरिक अनुभूति । दुःख की दो ही अवस्थाएं होती हैं दुःख की सामग्री और दुःख का संवेदन । आत्मा में दुःख है नहीं। दुःख बाह्य जगत् का संवेदन है। भीतर में दु:ख नहीं है। हमारा स्वरूप है आनन्दमय, सुखमय । हमारा स्वरूप दु:खमय नहीं है। दुःख थोपा हुआ है, आरोपित है, स्वरूप नहीं है।
दु:ख और समस्या एक नहीं है। दूसरा कोई भी व्यक्ति समस्या पैदा कर सकता है, पर दुःखी नहीं बना सकता। संकट में डाल सकता है, पर दुःखी नहीं बना सकता। यह एक सचाई है, जिसे अध्यात्म के आचार्यों ने उजागर किया है। निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि संकट या बाधा कोई भी व्यक्ति उपस्थित कर सकता है, पर विश्व में कोई भी शक्ति ऐसी नहीं है जो किसी को दु:खी बना सके। ___ क्या हरिचन्द्र को कम संकट में डाला गया? उसका राज्य गया, पत्नी गई, स्वयं भी स्थानच्युत हो गया। भयंकर संकट आया, पर क्या उसे दु:खी बनाया जा सका? बिल्कुल नहीं? राम ने चौदह वर्ष का बनवास सहा। जंगल में भटकते रहे। क्या वे दुःख का वेदन करते थे? महावीर और बुद्ध के समक्ष क्या-क्या संकट पैदा नहीं किए गए? पर क्या वे दु:खी बने? आचार्य भिक्षु के समक्ष कितनी प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा की गई, पर क्या उन्हें दु:खी बनाया जा सका? सुकरात को जहर पीने के लिए विवश किया गया, पर क्या उनको दु:ख में ढकेला जा सका? क्या जहर की प्याली ने मीरां को दु:खी बनाया? ये सब वे लोग थे जो संवेदना की चेतना से ऊपर उठकर ज्ञान का जीवन जीते थे। वैसे लोगों को कोई भी शक्ति दु:खी नहीं बना सकता है। ज्ञान चेतना की शक्ति बहुतं प्रखर होती है। इस शक्ति से संपन्न व्यक्तियों का सुख अबाध रहता है। कोई उन्हें दु:खी . नहीं बना सकता।
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