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उपसंपदा : जीवन का समग्र दर्शन
121 मुझे स्वयं को आश्चर्य हुआ कि कुछ ही दिनों बाद आंतें निर्देश मानने लगीं जैसे सधा हुआ घोड़ा या नौकर आदेश मानता हो। कब्ज का रोग मिट गया।
ज्ञानतंतु आदेश मान सकते हैं। आदेश देने का ढंग होना चाहिए। कठोर भाषा में स्वामी की तरह आदेश न दें। विनम्रता के साथ दिया जाने वाला प्रत्येक निर्देश मान्य होगा। भावक्रिया ज्ञानतंतु और कर्मतंतु को जगाने की विशिष्ट प्रक्रिया है।
जीवन की आधारभूत शक्ति जीवनीशक्ति को बचाने के उपाय की समग्रता का बोध कराना ही है प्रेक्षाध्यान। आज जो मैंने चर्चा की है, उन सबका यथार्थ अभ्यास करने से ही ध्यान का पूरा लाभ उठाया जा सकता है। अन्यथा लाभ होगा, पर थोड़ा। पूरे लाभ के लिए समग्रता पर ध्यान केन्द्रित करना है।
संन्यासी की कुटिया में चोरी हो गई। संन्यासी ने कहा मेरा सर्वस्व लुट गया। चोर पकड़ा गया। न्यायाधीश ने संन्यासी से पूछा- बताओ, क्या-क्या चोरी गया? उसने कहा सब कुछ चला गया। मेरा बिछौना, तकिया, कंबल, चादर, सब कुछ चोर ले गया। चोर बोला हजूर! संन्यासी झूठ बोल रहा है। मैंने तो केवल एक कंबल ही चुराया था। संन्यासी बोला—कंबल ही तो मेरा सर्वस्व है। वही सब कुछ है।
प्रेक्षाध्यान ही सब कुछ है। कभी आप इसे बिछा लें, ओढ़ लें, तकिया बना लें। सब कुछ है। ध्यान चाहे तो आप आहार पर केन्द्रित कर लें, बोलने पर केन्द्रित कर लें, चलने पर या सोने पर केन्द्रित कर लें। वह कभी कुछ बन जाएगा, कभी कुछ बन जाएगा, सब कुछ बन जाएगा। यानि समग्र जीवन का दर्शन बन जाएगा। इसे प्राप्त करेंगे तो आपका व्यक्तिगत जीवन सुखद और आनन्दमय बनेगा, आसपास में उसकी सौरभ फैलेगी और समाज को भी आप लाभान्वित कर सकेंगे।
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