________________
118
सोया मन जग जाए
उनके शरीर में नमक की कितनी मात्रा पहुंचती है, अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता।
चीनी और नमक ये दो मुख्य घटक हैं बीमारियों के। किडनी की बीमारी, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि इन दो के कारण अधिक होते हैं।
आहार के साथ तीसरी बात जुड़ी हुई है मात्रा की। आदमी की भोजन की मात्रा बहुत अधिक है। आदमी अपनी जरूरत से ज्यादा खाता है। आज के डाक्टर किलोरी के आधार पर डाइट का निर्धारण करते हैं। किलोरी की न्यूनता या अधिकता—दोनों हानिकारक हैं। आहार की मात्रा परिमित हो, यह विवेक सभी में नहीं है। अच्छी वस्तु अधिक खाने की आदत अनेक कठिनाइयों को जन्म देती है। मित आहार स्वास्थ्य का प्रमुख अंग है। जो इसकी उपेक्षा करता है, वह अपने जीवन की उपेक्षा करता है। __ जिसमें आहार का विवेक नहीं है, वह चाहे कितना ही पढ़ा-लिखा हो, जीवन का सही दर्शन उसे प्राप्त नहीं होता। परिमित आहार और संतुलित आहार वाला व्यक्ति ही जीवन-दर्शन पा सकता है। ___ आहार-विजय का एक अंग है-तपस्या। शिविर काल में यह भी चलती है। आयंबिल कराए जाते हैं। दो प्रकार के आयंबिल होते हैं। एक में थोड़े से कच्चे चावल खाए जाते हैं और दूसरे में सौ ग्राम अधपके चावल खाए जाते हैं। बस, पानी और चावल और कुछ नहीं। यह स्वास्थ्यकारक प्रयोग है। शिविर में आने वाले अनेक डाक्टरों ने इस प्रयोग से लाभ उठाया है, स्वस्थ हुए हैं।
आहार के साथ अनाहार भी जुड़ा हुआ है। खाना है तो कैसे खाना? क्या खाना? कितना खाना और कब खाना? नहीं खाना है तो कैसे? ये दोनों जुड़े हुए हैं। न खाना भी आहार का अंग है। इन दोनों का दर्शन प्रेक्षाध्यान का महत्त्वपूर्ण अंग है। इस दृष्टि से आहार और शरीर का संबंध है।
वाणी का अर्थ है भाषात्मक प्रयोग। इसका विवेक भी बहुत अपेक्षित है। प्राणशक्ति बोलने में बहुत खर्च होती है, इसलिए अनावश्यक नहीं बोलना चाहिए। बोलना हो तो धीरे बोलना चाहिए। नहीं तो नहीं ही बोलना चाहिए। तीव्र आवाज में बोलने से प्राणशक्ति का व्यय अधिक होता है।
जब वाणी का संयम, आहार का संयम और शरीर का संयम सधता है तब हम प्राणशक्ति को सुरक्षित रख पाते हैं।
प्राणशक्ति या जीवनीशक्ति को नष्ट करने वाले तत्त्व ये और हैं१. प्रतिक्रियात्मक वृत्ति २. अतिचिन्तन, अतिकल्पना और अतिस्मृति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org