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________________ उपसपदा : जीवन का समग्र दर्शन सकता। दोनों इतने संश्लिष्ट हैं कि इनको बांट कर नहीं देख सकते । हम सदा यह अनुभव करते रहे हैं कि आहार का हर विचार और हर कार्य पर प्रभाव होता है। आज वैज्ञानिक स्तर पर भी इस बात की पुष्टि हो रही है कि आदमी जैसा खाता है वैसा ही बनता है । वैज्ञानिक मानते हैं कि भोजन के द्वारा 'न्यूरो ट्रांसमीटर' बनता है और जैसा यह होता है वैसा ही आदमी का आचरण, विचार और व्यवहार होता है। भोजन का और इनका गहरा संबंध है । जो व्यक्ति आहार पर ध्यान नहीं देता, वह प्रेक्षाध्यान का साधक नहीं हो सकता। यदि कोई प्रश्न करे कि प्रेक्षाध्यान का साधक कौन तो कहा जा सकता है कि जो आहार की साधना करता है वह प्रेक्षाध्यान का साधक है। यह सरल परिभाषा है । जो आहार का विवेक नहीं रखता, वह ध्यान-साधना की आराधना नहीं करता । आहार के विवेक को छोड़कर ध्यान की साधना नहीं की जा सकती। ध्यान की ही क्यों, जीवन की साधना भी नहीं की जा सकती, कर ही नहीं सकते। आहार ठीक है तो विचार ठीक है। आहार स्वस्थ है तो व्यवहार स्वस्थ है। आहार गड़बड़ाया तो सब कुछ गड़बड़ा गया । 1 आजकल लोग परिष्कृत आहार लेना पसन्द करते हैं । परिष्कृत चीनी, परिष्कृत आटा, परिष्कृत दूध — सब कुछ परिष्कृत ही परिष्कृत । लोग गुड़ और शक्कर खाना पसन्द नहीं करते। वे चाहते हैं परिष्कृत दानेदार चीनी । यह दीखने में इतनी सुन्दर और सफेद होती है कि देखने वाले को मोह लेती है 1 खाने वाले मात्रा का ध्यान नहीं रखते, बहुत खाते हैं । आज ही मैंने पढ़ा, जो व्यक्ति बारह चम्मच चीनी रोज खाता है, वह अपनी रोग-प्रतिरोधक शक्ति का साठ प्रतिशत भाग गवां देता है । जो चौबीस चम्मच चीनी रोज खाता है, उसकी रोग-प्रतिरोधक शक्ति सर्वथा क्षीण हो जाती है, नष्ट हो जाती है । जो विटामिन हमारे मस्तिष्क और हृदय के लिए आवश्यक होते हैं, उन सब को चट कर जाती है यह चीनी। चीनी के कारण मस्तिष्कीय और स्नायविक दुर्बलता के साथ-साथ और-और भी अनेक व्याधियां उत्पन्न होती हैं । कुछ व्यक्ति अत्यधिक मात्रा में चीनी खाते हैं और जीवन भर रोग की पीड़ा को भोगते रहते हैं । वे मरते दम तक चीनी नहीं छोड़ते और यह चीनी उन्हें यमलोक पहुंचा देती है । 1 स्वाद- - वृद्धि के लिए दो वस्तुएं प्रसिद्ध हैं— चीनी और नमक। अनेक लोग ऐसे हैं जो चीनी से परहेज रखते हैं, पर नमक अत्यधिक मात्रा में खाते हैं । बम्बई के एक डाक्टर का लेख पढ़ा था । उसने यह परामर्श दिया है कि दिनभर में केवल एक या दो ग्राम नमक शरीर के लिए अपेक्षित है। इससे ज्यादा नमक शरीर में अनेक रोग उत्पन्न करता है । जो लोग तले हुए या नमकीन पदार्थ खाते हैं, Jain Education International 117 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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