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________________ 116 सोया मन जग जाए पूरी तन्मयता के साथ पकड़ में आता है। ध्यान का अपना परिवार है। वह जीवन का दर्शन है। उसे तोड़कर हम जीवन को देख नहीं सकते। यह थोपा हुआ या आरोपित नहीं है। यह समग्र जीवन जीने की एक प्रक्रिया है। जीव, जीवन और प्राण ये सब प्राणी के द्योतक हैं। ये सब प्राणशक्ति से संबंध रखने वाले हैं। जीवन का मूल आधार है प्राणशक्ति। एक जीवित आदमी और एक मृत आदमी में यही तो अन्तर है कि जिसमें प्राणशक्ति काम करती है वह है जीवित और जिसमें प्राणशक्ति नहीं है, चुक गई है, वह है मृत व्यक्ति। यही भेद-रेखा है। एक में प्राणशक्ति सक्रिय है, एक में प्राणशक्ति निष्क्रिय है या है ही नहीं।। प्राण की अनेक रश्मियां हैं। शरीर काम कर रहा है। प्राण की एक रश्मि बन गई शरीर। वाणी की प्रवृत्ति होती है। वाणी प्राण की दूसरी रश्मि है। इसे वचन प्राण कहा जाता है। हम इन्द्रियों को प्रवृत्त करते हैं। प्राण की तीसरी रश्मि है इन्द्रिय प्राण। हम मन से काम लेते हैं। प्राण की चौथी रश्मि बन गई मन प्राण। हम श्वासोच्छ्वास लेते हैं। यह है प्राण की पांचवीं रश्मि। यह है श्वासोच्छ्वास प्राण। इनमें समूचा जीवनदर्शन समा गया है। इन्द्रिय, वाणी, मन, शरीर और श्वासोच्छ्वास ये मुख्य घटक हैं जीवन के। एक शब्द में कहा जा सकता है कि अच्छा जीवन तब होगा जब प्राणशक्ति स्वस्थ होगी। प्राणशक्ति प्रतिरोधात्मक शक्ति है। जब यह प्रतिरोधात्मक शक्ति कम हो जाती है तब कितना ही उपचार किया जाए, रोग ठीक नहीं होता। यदि प्राणशक्ति के क्षीण हो जाने पर भी दवा में प्राणी को बचाने की क्षमता होती तो आज कोई मरता ही नहीं, क्योंकि आज बाजार में दवाइयों की भरमार है। मूल आधारभूत तत्त्व है प्राणशक्ति। जब वह चुक जाती है, तब प्राणी को मरना ही पड़ता है। ___ जीवन दर्शन का पहला सूत्र है प्राणशक्ति की सुरक्षा। इसका व्यर्थ व्यय न हो और इसे स्वस्थ रखा जाए। इसके लिए सबसे अच्छा उपाय है श्वास। श्वास जितना स्वस्थ, उतना ही प्राण स्वस्थ। जितना श्वास अस्वस्थ, उतना ही प्राण अस्वस्थ। यानी श्वास के द्वारा प्राण को बचाया जा सकता है। श्वास जितना दीर्घ होगा प्राणशक्ति उतनी ही सुरक्षित रह पाएगी, उतना ही जीवन स्वस्थ रहेगा, अवरोध कम आएंगे। प्राण को स्वस्थ रखकर शरीर, वाणी, मन और इन्द्रियों को स्वस्थ रखा जा सकता है। यह सारा प्राण की स्वस्थता का परिणाम है। साधना का एक सूत्र है—मिताहार। आहार और शरीर—इन दोनों को सर्वथा अलग-अलग नहीं किया जा सकता। आहार और मन को अलग नहीं किया जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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