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सोया मन जग जाए परम मित्र नहीं है? दर्शन केन्द्र का जागना यथार्थ तक पहुंचने का मार्ग है। क्या यह मित्र नहीं है? जो हमें यथार्थ के साथ जोड़े, क्या वह मित्र नहीं होता? एक-एक केन्द्र का जागना मैत्री का उत्पन्न होना है। इसे इस भाषा में कहा जा सकता है. अप्पा मित्तममित्तं च। आत्मा ही मित्र है। यह ध्यान करने वाला अनुभव कर सकता है। यह हमारा अपना अनुभव है। अनुभव का सर्वोपरि मूल्य होता है।
कबीर के पास कुछ पंडित आकर बोले- आपने वेद पढ़े हैं? कबीर ने कहा-नहीं। आपने उपनिषद् और पुराण पढ़े हैं? कबीर ने कहा—नहीं। तो फिर आप लोगों को क्या उपदेश देते हैं ? स्वयं कुछ जानते नहीं, शास्त्र पढ़े नहीं,
और लगे उपदेश देने। यह क्या मजाक बना रखा है? कबीर बोले-'आप सब ठीक कह रहे हैं। मुझे शास्त्रों का ज्ञान है ही नहीं। मैं पोथी की बात लोगों को नहीं बताता मैं आंखों देखी बात कहता हूं। जो मैंने स्वयं अनुभव किया है, उसको बताता हूं।'
वास्तव में अनुभवी ही बड़ा पंडित होता है।
मैं भी चैतन्य-केन्द्रों की साधना का ही अपना अनुभव बता रहा हूं कि आत्मा ही परम मित्र है और प्रत्येक केन्द्र का जागना आत्मा का जागना है। आत्मा को जगाकर, परम मित्र को पाकर हम बहुत कुछ लाभ उठा सकते हैं।
हम अपनी आत्मा को मित्र बनाएं। हम अपने आपके साथ मैत्री साधे। उस मैत्री के विकास के लिए अनुप्रेक्षा का सहारा लें। __ आदमी सहज ही छोटी-छोटी बातों पर दूसरों को शत्रु बना लेता है, अपनी आत्मा को भी शत्रु बना लेता है। इसलिए आवश्यक है कि चैतन्य-केन्द्र प्रेक्षा की साधना के साथ-साथ मैत्री और सहनशीलता की अनुप्रेक्षा की जाए। इन दो अनुप्रेक्षाओं के द्वारा मैत्रीभाव को बढ़ाया जा सकता है। अध्यात्म का कितना महत्त्वपूर्ण सूत्र है मैत्री के विस्तार का मेत्ती में सव्वभूएसु, वेरं मज्झ ण केणइ सबके साथ मेरी मैत्री है, वैर किसी के साथ नहीं है। शत्रुता को समाप्त ही कर डाला। यह स्वर वहां से निकला जहां सब कुछ त्यागने की क्षमता है। हर स्थिति में छोड़ने की क्षमता और इतनी पवित्रता जिसने जगा ली कि शत्रुता करने वाला भी शत्रु दिखाई न दे। वह उसके साथ भी मित्रता का व्यवहार करेगा। यहां लौकिक वैर की बात भी छूट जाती है। जहां न कृत का प्रतिकार होता है, न और कुछ। सर्वत्र मैत्री ही मैत्री। ___ अध्यात्म की दृष्टि से मैत्री के परिप्रेक्ष्य में दूसरा कोई होता ही नहीं। यदि यह माना जाए कि यह दूसरा है तो वहां मैत्री हो नहीं सकती, वैर-विरोध मन से
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