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परिष्कार वैरवृत्ति का
दक्षता भी मित्रता निभाती है। यह व्यक्ति की रक्षा करती है, उसे पूजा-प्रतिष्ठा प्राप्त कराती है।
मनोबल व्यक्ति का परम मित्र है। वह व्यक्ति की हर समस्या को सुलझा देता है। मनोबल के अभाव में घुटने टिक जाते हैं। मनोबल बहुत बड़ा मित्र
धैर्य आदमी का सहज मित्र है। धैर्य आवेश का प्रतिपक्षी है। वह व्यक्ति को बचाता है।
सेठ घर आया। पत्नी को देखा। वह सो रही थी। उसके साथ एक युवक भी सो रहा था। वह आग-बबूला हो गया और तलवार का वार करने के लिए उद्यत हुआ। तलवार की नोक एक फ्रेम से टकराई। उस फ्रेम में एक श्लोक मढा हुआ था। उसमें लिखा था-'सहसा विदधीत न क्रियाम्'-जल्दबाजी में कोई काम मत करो। वह रुका। तलवार को एक ओर रखकर पत्नी को जगाया। पत्नी उठी। चरणों में प्रणाम किया। सेठ ने पूछा यह युवक कौन है? वह बोली यह आपका तरुण पुत्र है। आप परदेश गए थे तब दो वर्ष का था। आप आज चौदह वर्ष के बाद आए हैं। यह सोलह वर्ष का युवक हो गया है।' यह सुनते ही सेठ पानी पानी हो गया। उसके धैर्य ने परिवार के सत्यानाश से उसे बचा डाला। गैर्य परम मित्र है।
विद्या आदि पांचों मित्र हमारी पग-पग पर सुरक्षा करते हैं। हमें आगे बढ़ाते हैं, पूजा-प्रतिष्ठा दिलाते हैं।
अध्यात्म जगत् में आत्मा ही मित्र है। हम प्रेक्षाध्यान या चैतन्य केन्द्रों का अभ्यास अपने मित्र को जगाने के लिए ही कर रहे हैं। आज के वैज्ञानिक इस विषय पर अन्वेषण कर रहे हैं कि बुढ़ापे को कैसे रोका जाए। रूस के वैज्ञानिकों ने एक तथ्य प्रस्तुत किया कि 'थाइमसग्लैण्ड' बुढ़ापे को रोकने की ग्रन्थि है। यह आनन्द केन्द्र है। इसे बाल्यग्रन्थि भी कहा जाता है। बचपन में यह बहुत सक्रिय होती है, इसीलिए बच्चा बहुत मस्ती में रहता है। अवस्था के साथ-साथ यह निष्क्रिय होती जाती है। इस ग्रन्थि का काम है, सुरक्षा के कोषाणुओं को सक्रिय रखना, जिससे कि वे कोषाणू रोग के कीटाणुओं से लड़ सकें और स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकें। क्या स्वास्थ्य की सुरक्षा करने वाली यह ग्रन्थि हमारी मित्र नहीं है? ज्योतिकेन्द्र का जाग जाना क्या सच्चे मित्र का जाग जाना नहीं है? क्योंकि यही हमें क्रोध के अनिष्ट परिणामों से बचाता है। यदि यह केन्द्र जागृत न हो तो आदमी को अनगिन शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों को झेलना पड़ता है। इसके जागने पर आदमी बच जाता है। क्या यह
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