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________________ 108 सोया मन जग जाए विलक्षण थे, इस दुनिया में दुर्लभ थे। वे फल अत्यन्त स्वादिष्ट और पौष्टिक थे। यह प्रतिदिन का क्रम था। एक दिन चिड़िया जंगल में फल लेने गई हुई थी। राजकुमार चिड़िया के बच्चे के साथ खेल रहा था। न जाने उसके मन में क्या आया कि उसने चिड़िया के बच्चे का गला घोंट डाला। बच्चा मर गया। चिड़िया दो फल लेकर आई। देखा कि बच्चा मरा पड़ा है। बहुत दुःख हुआ। सोचा, बच्चे को राजकुमार ने मारा है। इसने मेरा बड़ा अपराध किया है। मन में प्रतिक्रिया हुई, प्रतिशोध की तीव्र भावना जागी। चिडियां ने झपट्टा मारा और राजकुमार की दोनों आंखें फोड़ डाली। राजकुमार अंधा हो गया। वह चिल्लाने लगा। चिड़िया ने अपराध का बदला ले लिया। वैर बंध गया। राजा आया, देखा पर समझ नहीं सका। चिड़िया बोली यह है कृत का प्रतिकार। राजकुमार ने मेरे बच्चे को मारा तो मैंने उसकी आंखें फोड़ डाली। मैंने प्रतिशोध ले लिया। अब मैं जा रही हूं, यहां रह नहीं सकती। राज़ा बोला-'पूजना! मेरे बच्चे ने अपराध किया। तुमने बदला ले लिया। कृत का प्रतिकार हो गया। बात समाप्त हो गई। बात मन से निकाल दो और तुम यहीं रहो, जाओ मत ।' चिड़िया बोली-'अब मैं यहां नहीं रह सकती। अपराध-जन्य वैर मेरे मन से निकलेगा नहीं। मैं जाती हैं।' वैर की श्रृंखला बहुत लंबी होती है। संक्षेप में पांच कारण बताए गए हैं। और-और भी अनेक कारण हो सकते हैं। यह लौकिक स्थिति का चित्रण है कि जगत् में वैर चलता है, रुकता नहीं। प्रश्न है कि आदमी वैर-विरोध रखकर कब तक जीवित रहेगा? नीतिज्ञ लोगों ने कहा कि वैर की स्थिति अच्छी नहीं है। मनुष्य को मैत्री का बोध भी होना चाहिए। वैर का प्रतिपक्ष है मैत्री। हम दो दृष्टियों से मैत्री पर विचार करें। एक है नीति की दृष्टि और एक है अध्यात्म की दृष्टि । नीतिकार कहते हैं कि हमारे पांच मित्र हैं -विद्या, शौर्य, दक्षता, बल और धैर्य। ये असली मित्र हैं। सहज और स्वाभाविक मित्र हैं। ___मित्र दो प्रकार के होते हैं—सहज मित्र और कृत मित्र। हम किसी को मित्र बनाते हैं, किसी के साथ मैत्री करते हैं, वे सहज मित्र नहीं होते, अर्जित या कृत मित्र होते हैं। वे सदा साथ नहीं रहते, साथ नहीं देते। सहज मित्र सदा साथ रहते हैं। विद्या सहज मित्र है। वह अपने आश्रय को नहीं छोड़ती। वह सदा साथ रहती है। मित्र वह होता है जो कठिनाइयों से बचाए। विद्या कठिनाइयों से बचाती है, साथ देती है। शौर्य व्यक्ति का परम मित्र है। यह रक्षा करने में जितना दक्ष है उतना कोई दक्ष नहीं है। स्वयं का शौर्य और पराक्रम ही स्वयं की रक्षा करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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