SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 104 सोया मन जग जाए होता। दोष होता है प्रवृत्ति के पीछे रह जाने वाले संस्कार का। संस्कार का होना और संस्कार का न होना, यह मूल कारण है बंधन का और बंधन मुक्ति का। दो साधक जा रहे थे। रास्ते में नाला आ गया। किनारे पर एक युवति बैठी थी। पर पानी से डरती थी। उसने साधकों से कहा, मुझे उस पार पहुंचा दो। एक हिचकिचाया। दूसरे ने उस युवति को कंधों पर बिठा कर उस पार पहुंचा दिया। युवति अपनी दिशा में चली गई और साधक अपनी दिशा में चल पड़ा। दूसरा साधक भी पहुंच गया। दोनों आश्रम में चले गए। युवति को न छूने वाले साधक के मन में युवति की बात बार-बार उभर रही थी। उसने पहले साधक से दो-चार बार बात कही कि तूने युवति को छूकर अच्छा नहीं किया। वह साधक बोला—अरे! मैं तो उस युवति को कंधे से कभी उतार कर भूल गया हूं और तू उसे अभी सिर पर लिए घूम रहा है? समस्या यह है। प्रवृत्ति चली जाती है, पर प्रवृत्ति का संस्कार नहीं जाता। संस्कार आदमी को जकड़ देता है। प्रवृत्ति स्वाभाविक और राग रहित हो कि पीछे संस्कार न छूटे। व्यक्ति चाहे खाए, पीए, घूमे, बैठे, बातचीत करे, कपड़ा पहने, मकान में रहे, वन में रहे, प्रवृत्ति हो, पर संस्कार न छूटे। यह प्रवृत्ति बांधती नहीं। यह बात तब संभव है जब विचय ध्यान का अभ्यास परिपक्व हो जाए। प्रेक्षाध्यान विचय ध्यान का ही एक प्रकार है। केवल श्वास-प्रेक्षा या शरीर-प्रेक्षा पर ही नहीं अटक जाना है। यह तो ध्यान की पृष्ठभूमि है। इसके पश्चात् हमें विचय ध्यान करना है। दूसरे शब्दों में हमें समस्या लेकर बैठना है और समाधान खोजना है। समस्या चाहे वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय या पारिवारिक हो, सबका समाधान विचय ध्यान के द्वारा खोजा जा सकता है। प्राचीन आचार्यों ने इस विधि से अनेक समाधान खोजे हैं। आज आश्चर्य होता है यह देखकर कि प्राचीन समय में इतने उपकरण नहीं थे, सामग्री नहीं थी, साधन नहीं थे, फिर प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इतनी सूक्ष्म खोजें कैसे कीं। कैसे जाना परमाणु को, लोक-अलोक को, धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय को? कैसे पकड़ा परमाणुओं के अनेक आयामों को? इसका उत्तर है कि उपकरण नहीं थे, साधन नहीं थे, पर उनके पास जबरदस्त ध्यान-विधि थी, जिसके माध्यम से वे सब कुछ जान गए। ___ जो चीजें आज सूक्ष्मतम वैज्ञानिक यंत्रों की पकड़ में भी नहीं आती, उन सबका यथार्थ विवरण उन प्राचीन आचार्यों, ऋषि-मुनियों ने दे डाला। यह कैसे किया? यह सारा हुआ सूक्ष्म ध्यानशक्ति के द्वारा। उदासी की समस्या को भी विचय ध्यान के द्वारा सुलझाया जा सकता है। स्वयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy