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सोया मन जग जाए
चिन्तन चले । समाधान मिल जाएगा। ध्यान के द्वारा अनेक समस्याओं का समाध न हुआ है, समाधान खोजे गए हैं । दुःख क्यों है ? दुःख क्यों होता है? उसका स्रोत कहां है? इस समस्या को लेकर बैठें। ध्यान में समाधान मिल जाएगा। ध्यान के द्वारा उन सभी समस्याओं का समाधान मिल जाता है जिनका समाधान बाहर नहीं खोजा जा सकता, नहीं मिलता। यह विचय ध्यान का प्रयोग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
उदासी स्वयं एक समस्या है। इसका समाधान स्वयं खोजें। अपनी समस्या को स्वयं सुलझाएं। दूसरों के पास जाकर समस्या का समाधान पूछेंगे तो उत्तर मात्र मिलेगा, आप सुन लेंगे, पर उदासी मिटेगी नहीं । समस्या ज्यों की त्यों बनी रहेगी। किसी ने बौद्धिक प्रश्न किया और उसे बौद्धिक उत्तर मिला । उसका बौद्धिक समाधान हो गया । किन्तु उदासी बौद्धिक समस्या नहीं है, मानसिक समस्या है। भोगी जा रही है । भोग तो आप रहे हैं और समाधान कोई दूसरा दे, यह कैसे संभव होगा? दूसरे के द्वारा यह समस्या सुलझ नहीं सकती । यह तो स्वयं के द्वारा ही समाहित हो सकती है । आप स्वयं ध्यान में जाकर उसके समाधान का उपाय पा सकते हैं और समस्या का समाधान कर सकते हैं। यदि ध्यान का सम्यक् प्रयोग हो तो यह बात असंभव नहीं है। ध्यान केवल मनोरति की वस्तु नहीं है कि ध्यान किया और मन आनन्द से भर गया । ध्यान का उद्देश्य आनन्द आना मात्र नहीं है। आदमी विश्राम करता है, आनन्द आता है। आदमी दो-चार मील घूम कर आता है और आते ही ठंडा स्थान मिल जाता है विश्राम के लिए तो वह आनन्द का अनुभव करता है। भूख लगी, मनोज्ञ भोजन मिला तो आनन्द आयेगा । प्यास लगी और ठंडा पेय पीने के लिए मिल गया तो आनन्द की अनुभूति होगी। यदि ध्यान और कायोत्सर्ग का काम इतना ही है तो यह कोई विशिष्ट बात नहीं है । कायोत्सर्ग किया, तनाव मिट गया। शिविर में दस दिन रहे, खूब आनन्द का अनुभव हुआ। क्योंकि न बाजार जाना, न रसोई पकानी और न अन्यान्य श्रम करना, न कमाना और न सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाना । आराम ही आराम । विश्राम ही विश्राम । आनन्द ही आनन्द | यह तो बहुत छोटी बात है । हम यथार्थ को समझें। ध्यान और कायोत्सर्ग का मतलब कोरा आनन्द आना नहीं है। यह तो होगा ही । साथ-साथ उसका मूल प्रयोजन है सचाई को समझ कर अपनी समस्या को सुलझाना । यदि यह तथ्य हृदयंगम होता है तो ध्यान का प्रयोजन सिद्ध होता है ।
विचय ध्यान का मार्ग सचाई को जानने का सही मार्ग है । निर्विचार या
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