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________________ समस्या है उदासी की 101 तीसरा है समाज का वातावरण । समाज अनेक व्यक्तियों का समूह है। वहां अनेक प्रकार की समस्याएं और स्थितियां पैदा होती हैं और आदमी उदास हो जाता है। वह उन सामाजिक स्थितियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता । इस प्रकार आन्तरिक वातावरण, पारिवारिक वातावरण और सामाजिक परिवेश उदासी के हेतु बनते हैं । उदासी मानसिक विकार है। डिप्रेशन एक बड़ा रोग है । उदास व्यक्ति अपनी क्षमताओं का ठीक उपयोग नहीं कर सकता। उसकी शक्तियां मुरझा जाती हैं, क्षीण हो जाती हैं, सिकुड़ जाती हैं। प्रसन्न रहने वाला अपने शक्तियों का सही उपयोग कर सकता है । प्रश्न होता है कि उदासी से मुक्ति पाने का उपाय क्या है ? वैज्ञानिकों ने भी इस प्रश्न पर विचार किया है। उनका सुझाव है कि यदि पोषक आहार पर्याप्त मात्रा में होता है तो व्यक्ति उदासी से छुटकारा पा लेता है। पोषक आहार के अभाव में उदासी तत्काल आ जाती है । जिस आहार में विटामिन्स और एमिनो एसिड का उचित संतुलन होता है तो उदासी का एक हेतु समाप्त हो जाता है । उदासी को निरस्त करने का दूसरा उपाय है, स्वयं की समस्या का समाधान स्वयं में खोजने की चेष्टा । समस्या आती है, आदमी उलझ जाता है, घुटने टिक . जाते हैं और तब उदासी छा जाती है। समस्या प्रत्येक व्यक्ति के सामने आती है । ऐसा छोटा-बड़ा, एक भी आदमी नहीं है जिसके सामने समस्याएं न हों । समस्या आए और उसके समाधान की चेष्टा हो तो उदासी नहीं आती । सचेष्टता उदासी को नष्ट करने का उपाय है। हम योग साधना में श्वास- प्रेक्षा या शरीर - प्रेक्षा का अभ्यास करते हैं। यह अभ्यास एकाग्रता को साधने का अभ्यास है। एकाग्रता सध जाने पर भी यदि श्वास- प्रेक्षा और शरीर- प्रेक्षा ही की जाती रहे तो यह ध्यान का सम्यक् या पूर्ण उपयोग नहीं है। एकाग्रता संध जाने पर विचय ध्यान करते चलें । उस पर एकाग्र होते चलें । इसी चिन्तन में आगे बढ़ते चलें। आपको प्रतीत होगा कि समस्या का समाधान हो गया है, समस्या सुलझ गई है। यदि एक बार में समाधान न हो तो दूसरी बार, तीसरी बार भी प्रयत्न करें। समाधान मिल जाएगा। ध्यान का मुख्य प्रयोजन है सचाई को खोजना, समस्या का समाधान पाना । समस्या का अर्थ है—अयथार्थ या झूठ । कोई झूठ सामने आ गया। अब उसका समाधान खोजना है तो उस समस्या या झूठ की यथार्थता को खोजें, न कि उस झूठ में उलझ जाएं। सचाई को खोजें । केवल उसी में लगे रहें । निरन्तर उसी का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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