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________________ स्वास्थ्य और प्रसन्नता शब्दों के बिना हमारी यात्रा नहीं चलती । हमारे भाव सदा शब्दों से आंख मिचौनी किया करते हैं । दोहरी कठिनाई है । शब्दों का संसार बहुत बड़ा है और उसकी वयाख्या भी बहुत बड़ी है । भाव का संसार भी बड़ा है | शब्द उसकी व्याख्या नहीं कर पाते । हम दो शब्दों से परिचित हैं | एक है हर्ष और दूसरा है विषाद । हम प्रसन्नता से परिचित नहीं हैं । यह दोनों से भिन्न है । मुसकराना, हंसना, चेहरे पर मुसकान का दौड़ जाना यह हर्ष है, प्रसन्नता नहीं । हर्ष के साथ विषाद का होना अवश्यंभावी है । दोनों जुड़े हुए हैं । एक के बाद दूसरा होता है । दिन के बाद रात और रात के बाद दिन का होना अटल नियम है । इसी प्रकार हर्ष के बाद विषाद और विषाद के बाद हर्ष का होना अनिवार्य है । केवल हर्ष या केवल विषाद कभी नहीं होता । यह द्वन्द्व सदा साथ रहता है । यह कभी नहीं बिछुड़ता । प्रसन्नता तीसरी स्थिति है । यह न हर्ष से जुड़ी हुई है और न विषाद से जुड़ी हुई है । यह इस द्वन्द्व से अतीत है, दोनों से परे की स्थिति है । प्रसन्नता का अर्थ है चित्त की निर्मलता | प्रसन्नं आकाशं—आकाश प्रसन्न तब होता है जब वह निर्मल होता है, बादलों से शून्य होता है । जब सारे बादल बिखर जाते हैं, तब आकाश को प्रसन्न कहा जाता है। बहुत बड़ा अन्तर है प्रसन्नता में और हर्ष में । हर्ष होता है इष्ट वस्तु की उपलब्धि होने पर | जब सारे विघ्न मिट जाते हैं, अनुकूलताएं होती हैं, तब हर्ष होता है | जब अनुकूल बात प्राप्त नहीं होती, तब विषाद छा जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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