________________
चैतन्य-जागरण का अभियान | २२३
का बन्धन सबसे ज्यादा विकट है । उदाहरण बहुत साफ है | भंवरा काष्ठ को भेद देता है, वही भवरा कमल-कोष में बंध जाता है । काष्ठ जैसे कठोर वस्तु को भेद डालने वाला भंवरा कमल कोष में बन्दी बन जाता है । उसका कारण है राग । .. आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ की व्याख्या में जो सबसे बड़ा सत्य खोजा, वह था राग की प्रधानता । उन्होंने कहा कि द्वेष की प्रधानता को तो सब लोग जान लेते हैं, सब लोग समझ लेते हैं | किन्तु राग को समझना बड़ा कठिन है । बहुत कठिन समस्या है राग को समझना, प्रियता को समझना ।
एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को गाली देता है, तत्काल समझ में आ जाता है कि वह गाली दे रहा है | अमुक काम कर रहा है | किन्तु एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को वासना के चक्र में फंसा रहा है, यह नहीं समझा जाता कि कोई गैर काम कर रहा है । बड़ा प्रिय लगता है । कारण यह है कि राग को समझना बड़ा जटिल काम है।
तेरापंथ का अर्थ है राग के प्रति दृष्टिकोण की निर्मलता । हमारा दृष्टिकोण द्वेष के प्रति जितना स्पष्ट, प्रत्यक्ष और निर्मल है, उतना राग के प्रति नहीं है । इसीलिए तेरापंथ के विषय में कुछ भ्रान्तियां हो जाती हैं । वे राग-जनित भ्रांतियां हैं, क्योंकि जहां राग का प्रश्न आया, वहां धर्म नहीं हैइस घोषणा ने, राग में रत मनुष्य के मन में भ्रान्तियां पैदा कर दीं । किन्तु यह बात समझ में आ जाए कि समस्या का मूल तत्त्व है राग । दुःख के चक्र का मूल तत्त्व है प्रिय-संवेदन तो बात बहुत साफ हो जाती है, कोई भ्रान्ति नहीं रह पाती।
हमारी समस्या क्या है ? अप्रिय व्यक्ति एक छोटी-सी गलती करता है, राई जितनी, तो पहाड़ जैसी दीखने लग जाती है । और प्रिय व्यक्ति पहाड़ जितनी बड़ी गलती करता है तो वह राई जितनी बड़ी भी नहीं लगती। लगता है कि अच्छा काम कर रहा है । यह बड़ी समस्या है । हम ध्यान दें। कोई व्यक्ति पक्षपात नहीं चाहता 1 सबसे बड़ा कष्ट होता है—पक्षपात ।
एक व्यक्ति था, सब प्रकार से संपन्न । माता-पिता सब विद्यमान थे। फिर भी बड़ा दुःखी था । उससे पूछा कि तुम्हें इतना दुःख क्यों ? कोई कमी नहीं । जितनी सुविधा चाहिए सारी तुम्हें प्राप्त हैं | सामग्री चहिए, सारी तुम्हें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org